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प्रतिपादन करने की इच्छा हो तो 'राजन्य' शब्द का प्रयोग किया जाता है वैश्य या शूद्र 'राजापत्य' का भान कराना हो तो 'राजन् ' शब्द का प्रयोग होता है।
मात्रिय-समान-शब्दाद-जनपदात-तस्य राजनि अपत्यवत् ।
'जनपद शब्दात क्षत्रियाद इस सूत्र की व्याख्या में उक्त वार्तिक का उल्लेख भाषा में किया गया है। इसका अर्थ है - 'क्षत्रिय' वाचक शब्द समान 'जनपद वाचक' शब्द से 'राजा' अर्थ में 'अपत्य' के सदश प्रत्यय होता है । यहाँ धात्रिय वाची' शब्द 'उपचार' से क्षत्रिय' तथा 'जनपदवाची' शब्द 'जनपद' कहा गया है। जो शब्द 'क्षत्रिय' का अभिधायक होते हुए जनपद को भी अभि व्यक्त करता है उस 'ठी समर्थ' शब्द से 'राजन् ' अर्थ में 'अपत्य' सदृश प्रत्यय होता है। इस प्रकार के शब्द से 'अपत्य' अर्थ में जो प्रत्यय वही राजा अर्थ में भी होता है । इस प्रकार 'पञ्चालस्यापत्यम्' इस अर्थ में जैसे - पञ्चाल शब्द से 'जनपद शब्दात् क्षत्रियाद' इस सूत्र से 'अ' प्रत्यय होता है। उसी प्रकार 'पाञ्चालानां राजा' इसमें भी 'पञ्चाल' से ' प्रत्यय होने पर 'पञ्चाल' रूप निष्पन्न होता है । 'जनपद शब्दात्' इस सूत्र से 'अपत्य' अर्थ में 'अञ्' विधान --------------------------------- I. लघु सिद्धान्त कौमुदी, अपत्याधिकार प्रकरणम्, पृष्ठ 901. 2. अष्टाध्यायी 4/1/168. 3. क्षत्रिय वचन एव शब्द उपचारेण क्षत्रिय इत्युक्तः । जनपद शब्दों जनपद इति
- न्यास 4/1/168.