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________________ २६ फूलोंका गुच्छा। आप मुझे किस अपराधके कारण वंचित करते हैं ? " महाराजने रानीको अपनी भुजाओंसे वेष्टित करके कहा-" देवि, देवदत्त जीवनको आत्महत्या करके नाश करनेका किसीको अधिकार नहीं है । सुखकी आशा छोड़कर दुःख वहन करो, यही जीवनका यथार्थ गौरव है । जिस मंत्रसे हम और तुम दोनों लूनीरके तीरपर दीक्षित हुए थे, उसी मंत्रसे बालक यशोवर्माको दीक्षित करो । पुत्रकी जननी बनकर हमारी इच्छा पूर्ण करनेके लिए अपने जीवनकी रक्षा करो।” रानीकी आज्ञासे पुत्र यशोवर्माके लाने के लिए उसी समय सवार दौड़ाये गये। परिशिष्ट। एपिग्राफिया इंडिकामें संग्रह किये हुए शिलालेखोंसे पाठक जान सकेंगे कि -महाराज हर्षदेवकी इच्छा और उनकी रानीकी साधना बहुत अंशोंमें पूर्ण और सफल हुई। यशोवर्माने अपनी मातासे युद्धदीक्षा लेकर गौड, खस, कौशल, काश्मीर, मिथिला, मालव, चेदि, कुरु और गुर्जर देशका विजय किया। तिव्वतनरेशके यहांसे कन्नोजपतिने एक सुन्दर देवमूर्ति प्राप्त की थी। ईस्वी सन् ९४८ में यशोवर्मा उक्त देवमूर्तिको कनौजसे ले आये और एक विशाल मन्दिर बनवाकर उसमें उसको प्रतिष्ठित किया। यह मन्दिर उन्होंने अपने माता "पिताकी वैकुंठ-कामनासे बनवाया। जयमाला । चित्रकारका नाम छविनाथ है । चित्र खींचना ही उसके जीवनका व्रत है । कवि जिस तरह काव्यका आलाप करके, स्वरमें छन्दको मिलाकर कविताद्वारा अपने मनका भाव प्रकाशित करता है, उसी तरह छविनाथ अपनी निपुण कमलसे रंग भरकर, तथा रेखाओंको खींचकर अपने मनका भाव चित्रमें स्पष्ट रूपसे झलका देता है । उसके अंकित चित्र ऐसे सुन्दर प्राकृतिक और भावयुक्त होते हैं कि उन्हें देखकर यथार्थ वस्तुका भ्रम होता है । आकाशमें पक्षी उड़ता है-उसका खींचा हुआ चित्र देखकर उसे लोग सहसा नहीं कह सकते कि यह सचमुच पक्षी है या उसका चित्र!
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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