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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
इसपर सास, माता और अड़ोस-पड़ोसकी सभी हितैषिणियोंने उसका खूब ही तिरस्कार किया।
रातको बादल घिर आये और रिमझिम रिमझिम वर्षा होने लगी । अपूर्वकृष्ण धीरे धीरे अपने बिछौनेपरसे मृण्मयीके पास खिसककर बहुत ही कोमल स्वर में बोले-मृण्मयी, क्या तुम मुझे प्यार नहीं करती?
मृण्मयीने तेजीके साथ उत्तर दिया-ना, मैं तुम्हें कभी प्यार न करूँगी । उसका सारा क्रोध एकत्र होकर अपूर्वके मस्तकपर वज्रके समान
आ गिरा। ___अपूर्वने उसकी चोटसे दुःखी होकर कहा-क्यों, मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया है ? मृण्मयीने कहा-तुमने मेरे साथ व्याह क्यों किया ?
इस अपराधकी कोई संतोषजनक कैफियत नहीं दी जा सकी । फिर भी अपूर्वने मन ही मन निश्चय कर लिया कि मैं इस दुर्बाध्य मनको, जैसे बनेगा वैसे, वशीभूत करके ही छोड़ेगा। __दूसरे दिन सासने बहूको एक कोठरीमें बन्द कर दिया; क्योंकि उसने समझ लिया था कि अब यह कुछ न कुछ उपद्रव अवश्य करेगी। पहले तो वह पिंजड़ेमें बन्द किये गये नये पक्षीकी तरह फड़फड़ाती हुई इधर उधर फिरने लगी, उसके बाद जब कहींसे निकल भागनेका कोई रास्ता न मिला, तब उसने बिछौनेकी चादर दाँतोंसे चीथकर टुकड़े टुकड़े कर डाली और इसके बाद वह जमीनपर श्रौंधी पड़कर मन-ही-मन पिताको पुकारती हुई रोने और सिसकने लगी। ___इस समय कोई धीरे धीरे पास आया और बड़े प्रेमसे धूल में लोटते हुए उसके बालोंको कपोलों परसे एक ओर हटा देनेकी चेष्टा करने