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समाधि
लगा। इस पर मृण्मयीने मस्तक हिलाकर बड़े जोरसे उसका हाथ झटकेसे अलग कर दिया । तब अपूर्वने अपना मुँह उसके कानोंके पास ले जाकर बहुत ही कोमल स्वरसे कहा-मैं चुपचाप दरवाजा खोले देता हूँ । चलो, हम लोग यहाँसे भाग चलें। मृण्मयीने तेजीसे सिर हिलाकर रोते रोते कहा-ना । तब अपूर्वने उसकी ठोढ़ी पकड़ कर मुँह ऊपर उठानेकी चेष्टा करते हुए कहा-एक बार देखो तो सही, कौन अाया है ! इस समय राखालकी अक्ल चकरा रही थी। वह पृथ्वीपर पड़ी हुई मृण्मयीकी ओर देखता हुआ द्वारके समीप ही खड़ा था। मृण्मयीने मुख न उठाकर अपूर्वका हाथ झटक दिया । फिर भी अपूर्वने प्रेमपूर्वक कहा-देखो, राखाल तुम्हारे साथ खेलनेके लिए आया है। तुम उसके साथ खेलने नहीं जाअोगी? उसने गुस्सेसे भरे हुए स्वरमें कहा-ना । राखालने भी देखा कि आज मेरी दाल न गलेगी, इस लिए वह किसी तरह जान बचाकर भाग गया । परन्तु अपूर्व चुपचाप वहीं बैठे रहे । जब मृण्मयी रोते रोते थककर सो गई, तब वे धीरेसे उठे और बाहरकी साँकल चढ़ाकर चल दिये।
इसके दूसरे दिन ईशान मजूमदारका पत्र आया । उसमें उन्होंने पहले अपनी प्राणप्यारी बेटी मृण्मयीके विवाहमें उपस्थित न हो सकनेके कारण दुःख प्रकट किया था और अन्तमें अपनी बेटी और दामादके कल्याणके लिए ईश्वरसे प्रार्थना करके आन्तरिक आशीर्वाद दिया था।
पिताका पत्र पढ़कर मृण्मयी अपनी सासके पास गई और बोलीमैं अपने पिताके पास जाऊँगी, मुझे भेज दो। सास यह असंभव प्रार्थना सुनकर जल उठी और झिड़ककर बोली-बापका कुछ ठीक ठिकाना भी हो कि कहाँ रहता है ! कहती है कि बापके पास जाऊँगी । इसका यह ढंग तो देखो ! बहू इसका कुछ भी उत्तर न देकर चली गई और अपने