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समाप्ति
अब मृण्मयीकी माता तथा अड़ोस-पड़ोसकी सब बड़ी बूढ़ी स्त्रियोंने उसे उसके भावी कर्तव्यके सम्बन्धमें लगातार उपदेश देनेका सिलसिला बाँध दिया। खेलना, कूदना, जल्दी जल्दी चलना, जोर जोरसे हँसना, लड़कोंके साथ मिलना जुलना और भूख लगते ही भोजन करने बैठ जाना, आदि सभी बातें न करनेकी सलाह देकर उन्होंने बड़ी सफलताके साथ यह सिद्ध कर दिया विवाह होना कोई ऐसी वैसी बात नहीं है—वह बड़ी ही भयंकर चीज है। इससे मृण्मयीको भी विश्वास हो गया कि मानो मुझे यह हुक्म सुना दिया गया है कि तुझे जीवन-भर जेलमें रहना पड़ेगा और अन्तमें फाँसी दे दी जायगी।
आखिर उस दुष्टने अड़ियल टट्टके समान गर्दन टेढ़ी करके और पीछे हटकर कह दिया कि मैं विवाह नहीं करूँगी।
तो भी उसे विवाह करना पड़ा।
इसके बाद शिक्षाका प्रारंभ हुा । एक ही रातमें मृण्मयीकी सारी स्वतंत्र पृथ्वी अपूर्वकी माँके घरके अन्दर कैद हो गई। ___ सासने संशोधन-कार्य जारी कर दिया। उसने बड़ी ही कठोरतासे कहा-देखो बेटी, अब तुम छोटी बच्ची नहीं हो। हमारे घरमें अब तुम्हारा यह बेहयापन न चलेगा।
पर सासने यह बात जिस भावसे कही, बहूने उसे उस भावसे ग्रहण नहीं किया। उसने सोचा, यदि इस घरमें न चलेगा, तो शायद कहीं दूसरी जगह चले जाना पड़ेगा । आखिर दोपहरको वह लापता हो गई। ढूँढ़ खोज होने लगी कि वह कहाँ गई। अन्तमें विश्वासघातक राखालने किसी गुप्त स्थानसे उसको पकड़वा दिया । वह एक बड़के तले राधाकान्त ठाकुरके टूटे हुए रथमें छिपकर बैठी थी।