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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
सिर अच्छी तरहसे गूंथ दिया करूँगी और नित्य बढ़िया तेल लगाऊँगी तो धीरे धीरे यह दोष भी दूर हो जायगा।
अपूर्वकी इस पसन्दका नामकरण भी हो गया । पास-पड़ौसके लोग इसे 'अपूर्व पसन्द' कहने लगे। उस गाँवमें यद्यपि ऐसे लोगोंकी कमी नहीं थी जो मृण्मयीको प्यार करते थे, परन्तु ऐसा एक भी नहीं दिखलाई दिया जो उसके साथ अपने लड़केका विवाह कर देना पसन्द करता हो।
यथासमय मृण्मयीके पिता ईशान मजूमदारको इस बातकी खबर दे दी गई । वह नदीके किनारेके एक छोटेसे स्टेशनपर एक स्टीमरकंपनीका क्लार्क था और माल लादने-उतारने और टिकट बेचनेका काम करता था।
मृण्मयीके विवाहकी खबर पाकर उसके दोनों नेत्रोंसे टपटप आँसू गिरने लगे। परन्तु यह कहना कठिन है कि उनके भीतर कितना दुःख था और कितना प्रानन्द ।
ईशानने कम्पनीके बड़े साहबके यहाँ कन्याके विवाहके लिए छुट्टीकी दरखास्त दी, परन्तु साहबने इसे एक बहुत ही मामूली कारण समझकर छुट्टी नामंजूर कर दी ! तब ईशानने अपने घर चिट्ठी लिखी कि मुझे दशहरेके मौकेपर एक सप्ताहकी छुट्टी मिलेगी, इस लिए विवाहकी मिती तब तकके लिए टाल देनी चाहिए; परन्तु अपूर्वकी माताने कह दिया कि इस महीनेका मूहूर्त बहुत ही अच्छा है, इस कारण अब मिती नहीं हटाई जा सकती। ____जब ईशानकी उक्त दोनों ही दरख्वास्तें नामंजूर हो गईं, तब वह चुप हो गया और व्यथितहृदय होकर पहलेके ही समान मालकी तौलाई और टिकट-बिक्री करने लगा।