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समाप्ति
जब संध्या के समय अपूर्व बाबू घरके भीतर गये, तब माँने पूछा- क्यों रे अपू, लड़की देख आया ? कैसी है ? पसन्द श्रई ?
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पूर्वने कुछ अप्रतिभ होकर कहा – हाँ, देख आया माँ, और उनमें से एक लड़की को पसन्द भी कर श्राया ।
माँने आश्चर्य के साथ पूछा- लड़की तो एक ही थी, बहुतसीकहाँ गई ?
अन्तमें बहुत कुछ इधर उधर करनेके बाद मालूम हुआ कि अपूर्वने पड़ोसिन की लड़की मृणमयीको पसन्द किया है । हाय ! हाय ! इतना पढ़ना लिखना सीखने पर भी लड़केकी यह पसन्द !
पहले पूर्व बहुत कुछ लज्जालु थे; परन्तु जब माताने उनकी पसन्दगी का प्रबल विरोध किया, तब वह लज्जाका प्रबल बाँध टूट गया और वे जिदमें आकर यहाँ तक कह बैठे कि यदि मैं विवाह करूँगा तो मृणमयी के ही साथ, अन्यथा करूँगा ही नहीं । ज्यों ज्यों वे अन्य मिट्टी की पुतलियों जैसी कन्याओंकी कल्पना करने लगे, त्यों त्यों विवाहसे उनकी अरुचि बढ़ने लगी ।
दो तीन दिन दोनों ओरसे मान अभिमान, आहार और अनिद्राकी चोटें चलने के बाद अन्त में जीत अपूर्वकी ही हुई । माँने अपने मनको समझाया कि एक तो मृण्मयी अभी निरी बच्ची है और दूसरे उसकी माँ इतनी योग्यता नहीं है कि वह अपनी लड़कीको अच्छी शिक्षा दे सके । यदि वह मेरे पास रहेगी तो मैं उसका स्वभाव अवश्य सुधार लूँगी । धीरे धीरे उन्हें यह सोचकर भी प्रसन्नता होने लगी कि उसका मुख सुन्दर है; परन्तु तत्काल ही उन्हें यह खयाल आ गया कि उसके सिरके बाल बहुत ही छोटे हैं । इससे उन्हें बड़ी ही निराशा हुई; परन्तु उन्होंने इस आशासे फिर अपने मनको समझा लिया कि यदि मैं उसका