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________________ सापीह सौभाग्यगुणानुयोगादनेन मार्दू मुकुनोपयोगा । तस्या यतो यौवनपादपस्तु बभूव मद्यः फलदानवस्तु ।।२३।। प्रर्थ-वह राणी सौभाग्य के उदय मे उस राजा के साथ में प्रेमपूर्वक पुण्यका उपभोग करने लगी जिससे कि उसका यौवनरूप वृक्ष शीघ्र हो फलदेने के सम्मुख हो निया अर्थात् उसके गर्भ रहा। कापिष्ठतोऽभ्येत्य वभव पुत्रः किलाकंदवः म मुदकसूत्रः । काले तदीयोदग्तोऽम्य भाग्य-वरम्य व चाराध नामभाग्यः ।२४। प्रयं-रश्मिवेग जो कापिष्ट स्वर्ग में जाकर प्रप्रभ देव हुवा था वही इस चक्रायुधके उम वित्रमाला को कूग्व से मय पाकर वज्रायुध नामका प्रसन्नता को बढ़ाने वाला पुत्र हुवा। रामात्र पृथ्वीनिलकाधिषम्य नाम्नाऽतिवेगम्य वगेश्वगम्य । मोदयशाम्बाप्रियकारिणीतिनाम्ना मुकामादिगुणप्रणानिः ।२५। प्रथं—इसी तरह विद्याधरों के मुग्विया प्रौर पृथ्वोतिलक नगर के राजा प्रतिवेग के प्रिय कारिणी नाम को राणी पो जो कि सुन्दरताको शाखाकं समान थी और उत्तम काम पुरुषार्थादि गुणों को खानि थी। थियोधराऽथाटभदेवधाम-गता ननोऽम्याउदरंजगाम । परम्परम्नेहवशेन वाला जन्माभवनाम च गन्नमाला ।।२६।। अयं - श्रीधराका जीव प्रथम स्वर्ग में जाकर देव हुमा था वह वहां से पाकर उस रानी के उदर से राजा पोर रानी के प्रत्यन्त स्नेह की वजह से पुत्रो हुवा जिसका नाम रत्नमाला रक्खा गया।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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