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________________ युवाऽगृहीद्वारिनिधः ममम्ना वभूयुरेनाः मुरमाः समस्ताः । माचित्रमाला खलु नाम गंगावदत्तमा म्फीतिधरी सदंगात् ।२०। प्रथं-दरियावके समान उस नौजवान ने जिन पौरतोंको स्वीकार को थी वे मभी यद्यपि एक से एक उत्तम रसको धारण करने वाली नदो सरोखो थी परन्तु उनमें चित्रमाला राणी तो गंगा के ममान सबसे भली थी जो कि अपने उत्तम अंगपरसे प्रपूर्व स्फूति दिखलाया करती थी। नावनंगाधिपतेः पनाका म्पे पग तन्मदशी मना का । नान्वाप यां मंलपन पिकाऽपि नाभिस्तु यम्याः मरसव वापी ।२१ प्रयं - यह पति से प्रेम करने में बहुत चतुर थी कामदेवकी पताका के समान यी रूप सौन्दयं मे तो उसके बराबर दूसरो कोई यो हो नहीं बोलने में कोयल को भी परे बिठाती थी और उसकी नाभि तो एक रसको भरी बावड़ी के नमान दीख पड़ती थी। नवालना यत्रबभूव माऽधुना यतः ममन्तान्मृदु मालकानना । महीपनेम्नं महिमानमध्यगान्नितान्तमुच्चम्तन सम्भवन्नगा ।२२। प्रथं-प्रब उस चित्रमाला के शरीर में बालक पन बिल. कुल भी नहीं रहा और मुखमण्डल पर मस्तक में प्रत्यन्त कोमल काले बाल होगये और स्तनरूप पवंत खूब ऊँचे उभर पाये थे इस लिये वह उस महीपति के साथ पृथ्वो के ही समान प्रादर का पात्र बन गई थी क्योंकि पृथ्वी पर भी साल वगरह पेड़ोंका बन होता है नई २ बेले भी हुवा करती हैं तथा ऊँचे २ पर्वत भी रहते हैं ।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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