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________________ धर्म-उमको हम प्रकार दान देने में तल्लीनताको देख कर उसको माता मे न हा गया क्योंकि वह लोभिन थी, इसलिये उसने उमे ऐसा करने से रोका किन्तु संसार में जिसको जिधर को रुचि होजातीवर किमोकने में नहीं रुका करती। अनेन निन्नातग्मानमा त मा विपद्य व व्याघ्रि अभदहो रुषा । मनिविभिन्ना प्रतिदहि जायने नथागनिम्नम्य किल्लाहनांमने ।।८।। प्र:- व. दान देने में नहीं सका इससे उसकी मां के मनमें बहन चिन्ता पंदा दुई प्रोर एमाम वर गेष पूर्वक मरकर व्याघ्री हुई। देवा, भगवान महान के मनमे बतलाया है कि प्राणि प्राणिको विचारधाग भिन्न होती है और वह उसी के अनुसार प्रागे को गति प्राप्त करता है। विमक्षितोडमी च नया कदाचनाऽपिगमदनोदरतो महामनाः । नगम नुन्नमवाप नावनाऽवसिंह चन्द्राभिधया मनः मना ।।९।। प्रयं किमो एक दिन उम भद्रमित्रको उसकी माताके जीव उग व्याघ्रीने ग्वा डाला इसलिये मरकर रामवत्ता के उबर से उसी मिासेन राजा के सज्जनोका प्यारा मिहचन्द्र नामक पुत्र हुवा। वभय पनादपि पृणचन्दवामहोदरम्नेन ममन्वितः म वा परम्परप्रममधापरीक्षण: समावभी दाशरथिः मलक्ष्मणः ।।१०।। ____ --इसके बाद उसके एक पूर्णचन्द्र नामका भाई और हवा, पर ये दोनों परम्पर प्रेमामृत का पान करते हुये श्रीराम पौर लक्ष्मण के समान रहने लगे।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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