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लोगों में चतुर समझा जाना था प्रतः वह ऐसा पा जसे कि शुक्स पक्ष कोर द्वितीया तिथि में उत्पन्न वा चन्द्रमा जो कि ममत्रों का मुखिया होता है।
वयम्यवर्गेण ममं कदा पकोडापगंद मुदन्त मापि पितुःप्रयोगभूति न पा कागोजानळरमायचेष्टा ।३१
प्रथ-एक समय अपने साथियों के माय बे खेलते हुये उमने उनसे ऐमो बात मनो िजो वंध्य कहे जाते है उन्हें पिता के कमाये हये पदार्थों से प्रपना निर्वाध करना भला नरों, किन्तु उन्हें खुद को कुछ न कुछ व्यवसाय करना न ये। व्यापारकाथ मनिन्दधान नीनिनीय मनो बजामः निज प्रपन्नन नदक नाम भाग्यानातं दविणं श्रयामः ।३२।
प्रय हुमतिये रमलोग भी व्यापार करने के लिये रत्नटोप बलें जहां पर या तनमन दारोते है और जिमको कि बहुत ही बड़ाई मनो जाता रे, उम अपूर्व नाम वाले द्वोर में चल करके अपने प्रयत्न से अपने अपने भाग्य के प्रनमार धन प्राप्त करें।
न्यगादि केनामुकवारका विनोदभावादधिषणाधा मम्मयतामाशु भव मग नकदा श्रीगुरुणापि मूतं ।३३।
प्रयं-माप लोग भी याद कगे जो कि एक बार गुरुजी ने मोबड़ी हो पन्छी बात की थी, इमप्रकार उन बालकों में से किसी एक लड़के ने विनोद वश होकर कहा।