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उसको पहले को पोप तो निकल कर साफ होती चली जावे और मागे नई पंवा न हो पावे, एवं उसका फोड़ा भरकर सूखता चला जावे और प्रतिमें उसका खरट सूख कर प्रापोग्राप उतर जावे।
से हो उस महात्माने अपने त्याग पोर बराग्य द्वारा नवीन राग तुष को तो उत्पन्न नहीं होने दिया और पुगनों को सहज से सहन कर निकाल बाहर किया। इस प्रकार राग द्वेष का पूरा प्रभाव हो जाने पर फिर जानावरण दर्शनावरण प्रौर अन्तराय इन सोन को का भी एक ही पन्नमुंहत में प्रभाव होगया। चक्रीव चक्रण मुदर्शनेन य आत्मगनिन बान शुभेन । चकायुधः केवलिगट म नेन पायाद पायाद् धरणातले नः ।३०
प्रयं-चक्रवर्ती राजा, सुदर्शन नामक चक्ररत्न से अपने रियों को परास्त कर देता है उसी प्रकार चक्रायुध नामक उन केवलो भगवान ने भी भले मार्ग पर चलने के द्वारा अपने प्रात्म दोषों को भी दूर कर दिया था, वे प्रात्मबली भगवान् उसी मन्मार्ग के द्वारा इस धरातल पर हम लोगों को पाप कमि बचाने रहें ।
भद्रम्या पदयों यथाऽभवन्मयादिनः मतेपनम्नवः वक्तः श्रोतुः क्षेमहेनवे सम्भयान पाठनो जवंजवे ।३१।
प्रथं-एक मधिसे भदमित्र नामके मादमी की जिमप्रकार उन्नति होकर वह बहुत ही शीघ्र प्रात्मा से परमात्मा बन गया, इम बात का संक्षर वर्ग मेने इस प्रान्ध में किया है जिसका कि पड़ा जाना इस संसार में वक्ता और श्रोता दोनों के भले के लिये होवे ।