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________________ जो शक्ति को गेके उमे अन्तराय प्रौर जो इस प्रारमा प्रात्मत्व को बिगाड़ने वाला हो, और से और कर देनेवाला हो उसे मोहनीय कम कहते हैं । यह चौथा मोहनीय कम बड़ा प्रभावशाली है जिमसे कि यह प्रास्मा अपने प्रापको भूलकर अन्य में अपनापन मानने लग रहा है। यदच्चनीनप्रतिपनये तु मौल्यम्य दाम्यम्य परन्तु हेतुः । तृतीयमङ्गादिगमागमाय तुरीयमङ्ग रम्य निरोधनाय ।१०। अर्थ-प्रघाति कर्मों में से पाला इम प्रात्मा को ऊंचा या नोचा कहलवाता है उसे गोत्रकम करते हैं. दूसरा वेदनीय कम है जो इसके साथ इसको भनी लगने वाली और वग लगने वाली चीजों का सम्पर्क करा देता है । तोमरा नाममो जो शरीर या उसके प्रङ्गोपाङ्ग वगेरह बनाने में सहायता करता है। चौथा प्रायुकम इस प्रास्मा को प्रोदारिकादि शोर में रोक रहता है। वपुष्यहंकार उदति मोह माहात्म्यतोऽना मिहनयोहः । नद्धानिकतपोपकयोः मुधामापरिग्रहान्यो ममकारनामा ।११ अर्थ- उग्युक्त घातिकमों में जो मोह नामका कम है, जिस के प्रभाव से इस प्रात्मा को एक तो दम दागेर म प्रहकार उत्पन्न होता है जिससे कि यह जीव इम शरीर को ही प्रात्मा समझने लग रहा है। इसी को मिथ्यात्व नाम का परिग्रह या अन्तरङ्ग परिग्रह कहते हैं । दूमग ममकार नामक परिग्रह होता है, जो कि इस शरीर के बिगाड़ने वाली चीजों में बैर भाव कराते हुये इस को पोषक चीजों के साथ मित्र भावरूप परिणाम कराता रहता है, यह
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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