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आनन्दघन की विवेचना-पद्धति
१५९ यह आत्मानुभव रूप रस का प्याला अति सरस है, किन्तु इसका पान करना अत्यन्त दुर्लभ है। प्रत्येक व्यक्ति इस अनुभव-रस का आस्वादन नहीं कर सकता। इस रसामृत का पान मताग्रही व्यक्ति तो कर ही नहीं सकता, क्योंकि जो सत्य को न पकड़ कर केवल स्वमत का दुराग्रह रखते हैं अथवा जो मोह-माया में डूबे हुए हैं, वे इस रस का पान करने और उसे पचाने की क्षमता नहीं रखते। इसका आस्वादन तो वे ही कर सकते हैं जो मताग्रह से रहित और मोह-माया से मुक्त हैं। ऐसे व्यक्ति इस रस को पीकर आत्मानन्द में निमग्न हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में उनकी ये पंक्तियाँ मननीय हैं :
आतम अनुभौ रस कथा, प्याला अजब विचार ।
अमली चाखत ही मरै, घूमै सब संसार ।' आत्मानुभव रूप रस के प्याले का विचार अद्भुत है, आश्चर्यकारक है। यह एक ऐसा विलक्षण रस का प्याला है, जिसका आस्वादन करते ही व्यक्ति आत्मानुभव में लीन हो जाता है। जिसने इस रस का पान नहीं किया, वह इस संसार में ही भटकता रहता है। वास्तव में, आत्मानुभूति के अभाव में समस्त प्राणी संसारचक्र में परिभ्रमण कर रहे हैं। सन्त कबीर ने भी आत्मानुभव के सम्बन्ध में कहा है कि
आतम अनुभव ज्ञान की. जो कोई पछे बात ।
सो गूगा गुड़ खाइ कै कहै कौन मुख स्वाद ॥२ इस आत्मानुभव रूप ज्ञान का वर्णन सम्भव नहीं, जो इसे प्राप्त करता है वही इसका स्वाद जानता है। सन्त रैदास ने भी कहा है कि यह लिखनेपढ़ने ज्ञान-विज्ञान की बातें नहीं है, यहां तो अनुभव है, मात्र आत्मानुभव । आत्मानुभव की महत्ता के सम्बन्ध में उपाध्याय यशोविजय का कथन भी द्रष्टव्य है। ज्ञान सार में उन्होंने कहा है कि समग्र शास्त्रों का अभ्यास मात्र दिशा-निर्देश कर सकता है, किन्तु एक ही आत्मानुभव
१. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ५३ । २. कबीर ग्रंथावली, पृ० १०० । ३. पढे गुन कछ काम न आवै, जौ लों भाव न दर से।
-रैदास की बानी, १३, पृ० १३ ।