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________________ 47 मानते हैं जो परवर्तीकाल में गृह उमास्वामिकृत हो गया। नाथूराम प्रेमी ग्रंथकार को यापनीय मानते हैं जबकि सागरमल जैन उन्हें पंथभेद से पूर्व दूसरी सदी की निग्रंथ परम्परा का मानते हैं। मुख्तार सा. के एतद्विषयक तर्क एवं सूचनायें उनके गंभीर अध्ययन की प्रतीक हैं। उनके शोध से ही यह विषय आगे बढ़ा है। प जुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व (5) उन्होंने मूलाचार, अनगारधर्मामृत तथा चारित्र भक्ति के दिगम्बर ग्रंथों का और आवश्यक, उत्तराध्ययन तथा प्रज्ञापनावृत्ति के समान श्वेतांबर ग्रंथों के उद्धरणों से यह बताया है कि प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों ने तथा मध्यवर्ती तीर्थंकरों के संघ के सदस्यों की योग्यतानुसार भिन्नभिन्न प्रकार से उपदेश दिये। उन्होंने इससे यह भी संकेत दिया है जब तीर्थकरों तक ने द्रव्य, क्षेत्र काल व भाव की स्थितियों के अनुरूप आदेश देने की परंपरा अपनाई, तब वर्तमान पीढ़ी इस परम्परा के प्रतिकूल क्यों जा रही है? आज के अनेक विद्वान् महावीर कालीन ग्रामीण संस्कृति में विकसित सिद्धांतों का वर्तमान औद्योगिक एवं नगरीय संस्कृति में पूर्णत: परिपालन का आदेश देकर जैन परम्परा के अनुकूल काम नहीं कर रहे हैं। उन्हें उनके शासन भेद एवं श्रावकाचार संबंधी लेखों से शिक्षा लेना चाहिये । इस परम्परा का पालन ही जैन धर्म की वैज्ञानिकता का प्रतीक है। (6) श्रुतावतार कथा के माध्यम से उन्होंने 'वीर शासन जयंती' का शुभारम्भ कराकर एक नई परम्परा को प्रतिष्ठित किया इस प्रकार वे केवल परंपरा - संवर्धक एवं शोधक ही नहीं थे, वे परंपरा-प्रतिष्ठापक भी थे । (7) उन्होंने भगवती आराधना, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, सन्मतिसूत्र एवं तिलोयपण्णत्ति पर गवेषणापूर्ण निबंध लिखे हैं। (8) उन्होंने अनेक ग्रंथों की समीक्षा कर 'ग्रंथ समीक्षा' के चार भाग लिखे जिनसे समाज में खलबली मची। (9) उन्होंने एक दर्जन से अधिक ग्रंथों की शोधपूर्ण प्रस्तावनायें लिखीं।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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