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पं जुगलकिशोर मुख्तार "बुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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आपने सराक जाति के उद्धार हेतु जो कार्य किया है, वह अभूतपूर्व है । इतिहास में यह कार्य स्वर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य है।
पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार पर आयोजित संगोष्ठी समय की मांग थी, इससे पंडित जी के समग्र जीवन दर्शन पर प्रकाश प्राप्त हुआ। शोधार्थियों को अनेक विषय प्राप्त होंगे।
सचमुच यह संगोष्ठी मील का पत्थर साबित हुई है।
शिवचरनलाल जैन
सीतारा मार्केट मैनपुरी उ. प्र. २०५००१
एक ज्ञान यज्ञ
पं. जुगलकिशोर मुख्तार बीसवीं सदी के यथार्थ प्रतिपादन के पुरोधा वाङ्मयाचार्य थे। उनकी अमर कृतियाँ इसका ज्वलन्त प्रमाण हैं। साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, सिद्धान्त आदि सभी विधाओं में उनकी लौह लेखनी अत्यन्त समादृत भूमिका पर आरोहित है। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था । लेखक, सम्पादक, कवि, समीक्षक, समाज सुधारक, राष्ट्रीय चेतना के संवाहक, संपादक, आर्षमार्गानुसार निश्चयैकान्त के सफल निरसक आदि के रूप में वे प्रख्यात हैं। जीवन में अनेकानेक पारिवारिक कठिनाईयों में भी वे मेरुवत् अविचल रहे । निस्पृहता उनका विशेष गुण था। मेरी भावना सूत्र को समाज को समर्पित कर उन्होंने सभी वर्गों से वात्सल्य प्राप्त किया, आदर प्राप्त किया। समाज उनका चिरकाल तक ऋणी रहेगा।
उपरोक्त धर्म और संस्कृति के संस्थारूप महनीय व्यक्तित्व का भावपूर्ण स्मरण अतिशय क्षेत्र तिजारा जी में प. पू. १०८ उपाध्याय श्री ज्ञानसागर महाराज की प्रेरणा और उनके सान्निध्य में अपने शिष्य प. पू. विरागसागर जी मुनि महाराज के साथ यहाँ विराजमान रहकर समाज को यथार्थ एवं सामयिक मार्गदर्शन वर्षायोग के अवसर पर निरन्तर दे रहे हैं। उनका ज्ञान, संयम निर्मलता के वर्तमान युग में संभव चरम पर स्थित कहा जा सकता है। उनमें विद्ववर्ग के प्रति हार्दिक वात्सल्य हैं। विद्वानों का समादर एवं उनका समाज को उपयोग, उनका लक्ष्य है। उनकी कृपा एवं प्रसन्न स्नेह के कारण