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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
जैन समाज को अपना चिर ऋणी बनाया है, वहाँ विद्वानों के सामने एक अच्छा अनुकरणीय आदर्श भी उपस्थित किया है। जैनधर्म और जैन साहित्य की सेवा के लिए जो कि वस्तुतः विश्व की सेवा है, टोडरमल जी के जीवन से शिक्षा ग्रहण कर उनके पथ का अनुकरण करते हुए अपने को उत्सर्ग कर दे तो हम टोडरमल जी के ऋण से उऋण हो सकते हैं।
बारहवे निबध का शीर्षक है - 'सन्मति विद्या-विनोद'।
मुख्तार जी की दो बेटियाँ थीं - सन्मति कुमारी और विद्यावती। इन दोनो की स्मृति मे मुख्तारजी ने एक बाल ग्रथालय की स्थापना की थी जिसे उन्होंने 'सन्मति विद्या-विनोद' नाम दिया था। यही नाम इस निबन्ध का रखकर उन्होने इसमें लिखा है कि कोई भी समाज अथवा देश जो उत्तम बालसाहित्य न रखता हो, कभी भी प्रगति नही कर सकता। अच्छे-बुरे संस्कारो का प्रधान आधार बाल साहित्य ही होता है।
मुख्तार जी की दृष्टि मे पुत्र और पुत्री दोनों समान थे। उन्होंने सन्मति पुत्री के जन्मोत्सव पर गाने के लिए बधाई गीत भी बनाया था जिसकी प्रथम पंक्ति थीं - "दे आशिष शिशु हो गुणधारी।" इसमें शिशु शब्द का प्रयोग इसीलिए किया गया था कि बधाई गीत पुत्र हो या पुत्री दोनों के जन्मोत्सव पर गाया जा सके। पुत्री का नाम आदिपुराण में वर्णित नामकरण संस्कार के अनुसार रखा था। सन्मति कुमारी में चार मुख्य गुण थे - सत्यवादिता, प्रसन्नता, निर्भयता और कार्यकुशलता। प्लेग हो जाने से इसे असमय में मरना पड़ा।
विद्यावती जब सवा तीन मास की थी तभी उसकी माँ मर गयी थी। बच्ची दूसरो को देने को कहा गया, किन्तु मुख्तार जी ने अन्यथा संस्कारों से बची रह सके - इस लक्ष्य से दूसरों को न देकर धाय को रखा और उसने उसका पालन लिया। विद्यावती ने धाय को कभी माँ कहकर नहीं पुकारा। सच बोलना, अपराध स्वीकार कर लेना इसके गुण थे। इसे ढाई वर्ष की उम्र में खसरा हुआ और उसी मे उसका मरण भी हो गया। मुख्तार जी को बच्चियों के गहने अपने उपयोग में लेना इष्ट नही रहा। उन्होंने गहनों से प्राप्त राशि से बच्चियों के नाम पर बाल ग्रंथालय की स्थापना की थी।