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प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
दसवाँ निबन्ध है - अभिनन्दनीय नाथूराम जी प्रेमी।
इस निबन्ध में मुख्तार जी ने प्रेमी जी को देश और समाज की सेवाओं के लिए अभिनन्दन के योग्य बताया है। उन्होंने प्रेमी जी के लिए यह भी लिखा है कि वे इस अभिनन्दन को पाकर कोई बड़े नहीं हो जायेंगे - वे तो स्वतः बड़े हैं - परन्तु समाज और हिन्दी जगत उनकी सेवाओं के ऋण से कुछ उऋण होकर ऊँचा जरूर उठ जायगा। प्रेमी जी का वास्तविक अभिनन्दन तो उनकी सेवाओं का अनुसरण है। उनकी निर्दोष कार्य पद्धति को अपनाना है और उन गुणों को अपने में स्थान देना है जिनके कारण वे अभिनन्दनीय बने
मुख्तार जी और प्रेमी जी के घनिष्ठ सम्बन्ध रहे। लगभग ७०० पत्रों का परस्पर में आदान-प्रदान हुआ। प्रेमी जी ने अपने पुत्र हेमचन्द्र की शिक्षा का भार मुख्तार जी पर ही डाला था। मुख्तार जी ने लिखा है कि प्रेमी जी प्रेम आर मौज यता की मूर्ति है। उनका प्रेमी' उपनाम बिलकुल सार्थक है। वे सरल और निप्कपट हैं। उनका आतिथ्य सत्कार मदा ही सराहनीय रहा है। उनका हृदय परोपकार और सहयोग की भावना से पूर्ण जान पड़ा है। उन्होंने समाज की ठोस सेवाएँ की हैं। वे अपने ही पुरुषार्थ तथा ईमानदारी के साथ किए गये परिश्रम के बल पर इतने बड़े बने हैं।
ग्यारहवें निबन्ध का शीर्षक है - अमर पंडित टोडरमल जी।
मुख्तार जी ने टोडरमल जी को अमर पंडित कहा है। उनके व्यक्तित्व के संबंध में मुख्तार जी ने लिखा है कि वे भोगों में बहुत कम योग देते थे। भोगों के सुलभ होते हुए भी उनमें उनकी विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। वे गृहस्थ होते हुए भी जल में कमल की तरह उससे भिन्न थे। उनका मोक्षमार्ग प्रकाशक एक बड़ा ही बेजोड़ ग्रन्थ है। इससे उनके अनुभव की गहनता, मर्मज्ञता तथा निर्भीक आलोचना का भी पता चलता है। उन्होंने मिथ्यादृष्टि एवं ढोंगी
जैनियों की खूब खबर ली है। शंका-समाधान द्वारा बड़ी-बड़ी उलझनों को सुलझाया है। गोम्मटसार के अध्ययन-अध्यापन के प्रचार का श्रेय आपकी हिन्दी टीका को ही प्राप्त है। आपने अपनी कृतियों और प्रवृत्तियों के द्वारा जहाँ