SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व हुये भी एक स्वतन्त्र स्तोत्र बन गया है। स्वामी समन्तभद्र ने अपने 'स्वयम्भू स्तोत्र' में चौबीस तीर्थङ्करों का स्मरण किया है और मुख्तार सा. ने प्रस्तुत सत्साधु - स्मरण - मंगलपाठ में भगवान् महावीर और उनके उत्तरवर्ती गणधरादि इक्कीस महान् प्रभावशाली आचार्यों के गुणों का स्मरण किया है, जिससे सामान्य श्रावकों के लिये तीर्थङ्करों की स्तुति के पश्चात् जैनधर्म के प्रभावक आचार्यों की स्तुति का मार्ग प्रशस्त हुआ है, साथ ही स्वयम्भूस्तोत्र का पूरक बना गया है। इन आचार्यों का स्मरण करने वालों में अनेक आचार्य, भट्टारक, विद्वान, कवि और शिलालेखों को लिखाने वाले भव्यजन हैं। संकलित आचार्यों में अनेक तो ऐसे महान् आचार्य हैं जो परवर्ती अन्य आचार्यों द्वारा भी स्मरण किये गये हैं । 237 श्री मुख्तार सा. . ने जिन प्रभावशाली आचार्यों का संकलन किया है, वे सभी ऐतिहासिक हैं और इनका संयोजन कालानुक्रम से है। श्री मुख्तार सा. ने अपनी इस कृति में सर्वप्रथम - "मंगलं भगवान् वीरो............।" इत्यादि मंगलपाठ का स्मरण कर लोकमंगल की कामना से भगवान् जिनेन्द्र देव की पूजा के अन्त में पठनीय संस्कृत शान्तिपाठ के एक पद्य को उद्धृत करते हुये कहा है कि - क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभावतु बलवान् धार्मिको भूमिपाल:, काले काले च सम्यग्विकिरतु मघवा व्याधवो यान्तु नाशम् । दुर्भिक्षं चौरमारी क्षणमपि जगतां या स्म भूज्जीवलोके, जैनेन्दं धर्मचक्रं प्रभवतु सततं सर्व-सौख्य-प्रदायि ॥ तदनन्तर आत्म-विकास हेतु शास्त्रों के अभ्यास किंवा स्वाध्याय से लेकर आत्मसिद्धि तक के लिये जो सार्थक प्रयास है उनकी भावना उसी संस्कृत शान्तिपाठ से प्रकट की है। साथ ही वादिराजसूरिकृत एकीभावस्तोत्र के उस पद्य को उद्धृत किया है, जिसमें भगवान् जिनेन्द्रदेव की सर्वाङ्ग सुन्दरता एवं उनके अपराजित व्यक्तित्व को प्रकट कर आभूषणों और शस्त्रास्त्रों को धारण करने की व्यर्थता प्रतिपादित की है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy