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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements प्रस्तुत कृति में विभिन्न ग्रन्थों अथवा शिलालेखों में उल्लिखित आचार्यों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सम्बन्धित उन पधों का संकलन किया गया है जो उन-उन आचार्यों की कीर्ति में चार चाँद लगाते हैं तथा उनके दिग्दिगन्तव्यापी प्रभाव को सूचित करते हैं। इन प्राचीन आचार्यों की धवलकीर्ति को प्रस्तुत करने वाले इन पद्यों के संकलन के साथ ही मुख्तार सा. ने उनका सभाष्य मूलानुगामी अनुवाद भी प्रस्तुत किया है, जिससे विषय-बोध सहज हो गया है।
प्रस्तुत कृति में कुल 21 उन पूतात्माओं का उल्लेख है, जिन्होंने जैनधर्म की दुन्दुभि बजाने का न केवल सार्थक प्रयास किया है, अपितु अपने जीवन में उन देवीय गुणों को आत्मसात कर स्वपर कल्याण किया है।
श्री मुख्तार सा. ने प्रस्तुत कृति के प्रारम्भ में एक चार पृष्ठीय लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना लिखी है, जिसमें इसके संकलन का प्रयोजन स्पष्ट करते हुये वे लिखते हैं कि - "पूतात्मा साधु पुरुषों का संसर्ग अथवा सत्संग जिस प्रकार आत्मा को जगाने, ऊँचा उठाने और पवित्र बनाने में सहायक होता है, उसी प्रकार उनके पुण्य-गुणों का स्मरण भी पापों से हमारी रक्षा करता है और हमें पवित्र बनाता हुआ आत्म विकास की ओर अग्रसर करता है।"
आगे वे लिखते हैं कि - "जब-जब मैं स्वामी समन्तभद्रादि जैसे महान् आचार्यों के पुरातन स्मरणों को पढ़ता हूँ तब-तब मेरे हृदय में बड़े ही पुष्ट विचार उत्पन्न हुये हैं, औद्धत्य तथा अहङ्कार मिटा है, अपनी त्रुटियों का बोध हुआ है और गुणों में अनुराग बढ़कर आत्म-विकास की ओर रूचि पैदा हुई है। साथ ही अनेक उलझनें भी सुलझी हैं।"
श्री मुख्तार सा. के उपर्युक्त लेखन में आचार्य समन्तभद्र का यह कथन मूर्तिमान हो गया है कि
तथापि ते पुण्यगुणस्मृतिर्नः पुनाति चित्तं दुरिताजनेभ्यः।
वस्तुतः इस संकलन में जिन पुण्यात्माओं का स्मरण किया गया है वे अपने-अपने समय के महान् प्रभावक आचार्य हैं। अत: यह संकलन होते