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________________ 215 + जुगलकिशोर मुख्ार "युगवीर " व्यक्तित्व एवं कृतित्व (i) अंगहीन सम्यकदर्शन- संसार प्रबंध को छेदने के लिए समर्थ नहीं है तर्क दिया - कमती अक्षरों वाला मंत्र सर्प-विष-वेदना को नष्ट करने में असमर्थ है ॥पद 21॥ नाऽनहीन मलं छेत्तुं दर्शनं जन्म-सन्ततिम् । नहिं मंत्रोऽक्षर-न्यूनो निहन्तिविषवेदनाम् ॥21॥ भाष्यकार नेअपनी प्रस्तावना में स्वामी समन्तभद्र के शोधपरक जीवन वृत्त को रेखांकित किया है। उन्होंने समन्तभद्र को परीक्षा प्रधानी होने के चारगणों की व्याप्ति बताई,जिसे भगवजिनसेनाचार्य ने आदि पुराण में कही है। 1. कवित्व 2. गमकत्व 3. वादित्व 4. और वाग्मित्व। कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि। यशः समन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥ वादिराज सूरि ने यशोधर चरित में, वादीभिसिंह सूरि ने गधचिन्तामणि में, वर्द्धमानसूरि ने वाराङ्गचरित में, शुभचन्द्राचार्य ने ज्ञानार्णव में, भट्टारक सकलकीर्ति ने पार्श्वनाथ चरित्र में, ब्रह्मअजित ने चन्द्रप्रभचरित में अजितसेनाचार्य ने अलंकारचिन्तामणि में, विजयवर्णी ने श्रङ्गारचन्द्रिका में, समन्तभद्र के विविधगुणों का वर्णन किया है, जिन्हें भाष्यकार ने सन्दर्भित पद्यों सहित वर्णन देकर समन्तभद्र स्वामी के बहुआयामी व्यक्तित्व को प्राञ्जलता प्रदान की। भाष्कार ने इस बात को अपनी व्याख्या का नया आयाम दिया कि धर्म पर अधिकार केवल मनुष्यों एवं देवों का नहीं है वरन् तिर्यंच पर्याय वाले कुत्ते, व हाथी आदि का भी है:- श्वाऽपि देवोऽपि देवः श्वाजायते धर्म किल्विषात्। इसी प्रकार इस बात को बड़ी साहस भरी चुनौती के साथ कहाकि स्वामी समन्तभद्र कितने क्रान्तिकारी व्यक्ति रहे जिन्होंने निर्मोही गृहस्थको मोही-मुनि की अपेक्षा श्रेष्ठ कहा गृहस्थो मोक्षमार्मस्थों निर्मोहो नैव मोहवान् । अनगारोंग्रही श्रेयान्, निर्मोहो मोहिनो मुने ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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