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प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व
पूज्य श्री ने समाज को एक युगान्तर बोध कराया-भूले बिसरे सराक भाइयों को समाज की मुख्य-धारा में जोड़कर सराक भाइयों के बीच अरण्यों में चातुर्मास कर उनके साथ संवाद स्थापित किया, उनकी समस्याओं को समझा-परखा और समाज का आह्वान किया, उनको अपनाने के लिये। पूज्य श्री की प्रेरणा से सराकोत्थान का एक नया युग प्रारम्भ हुआ है जिसके कुछ प्रतीक है उस क्षेत्र में निर्मित हो रहे नये जिनालय तथा सराक केन्द्र एवं औषाधालय आदि जहाँ धार्मिक तथा लौकिक शिक्षण की व्यवस्था की जा रही है। ___ इस आदर्श तपस्वी और महान विचारक के द्वारा धर्म के वास्तविक स्वरूप की प्रतिष्ठा एवं रूढ़ियों के समापन में सन्नद्ध सत्य की शाश्वतता के अनुसंधित्सुओं/जिज्ञासुओं के प्रति अनुराग के प्रति सभी नतमस्तक हैं। जिनवाणी के आराधकों को उनके कृतित्व के आधार पर प्रतिवर्ष श्रुत संवर्द्धन सस्थान के अवधान मे सम्मानित करने की योजना का क्रियान्वयन पूज्य उपाध्याय श्री के मंगल आर्शीवाद एवं प्रेरणा से सम्भव हो सका है। यह संस्थान प्रतिवर्ष श्रमण परम्परा के विभिन्न आयामों में किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिये पांच वरिष्ठ जैन विद्वानों को इकतीस हजार रूपयों की राशि से सम्मानित कर रहा है। सस्थान के उक्त प्रयासों की भूरि-भूरि सराहना करते हुए बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम श्री सुन्दरसिंह जी भण्डारी ने तिजारा में पुरस्कार समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था कि विलुप्त हो रही श्रमण परम्परा के साधकों के प्रज्ञान गुणानुवाद की आवश्यकता को इस तपोनिष्ठ साधक ने पहचान कर तीर्थंकर महावीर की देशना को गौरवमण्डित करने में महायज्ञ में जो अपनी समिधा अर्पित की है वह इस देश के सांस्कृतिक इतिहास का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंग है, जिसके प्रति युगों-युगो तक इस देश की बौद्धिक परम्परा ऋणी रहेगी। गुणानुवाद के प्रतिष्ठापन के इस प्रक्रम को अधिक सामयिक बनाने के उद्देश्य से श्रमण परम्परा के चतुर्दिक विकास में सम्पूर्णता में किये गये अवदानों के राष्ट्रीय स्तर पर किय गये आकलन के आधार पर एक लाख रूपयों की राशि के पुरस्कार का आयोजन इक्कीसवीं सदी की सम्भवत: पहली रचनात्मक श्रमण घटना होगी। पूज्य गुरूदेव का मानना है कि प्रतिभा और संस्कार के बीजों को प्रारम्भ से ही पहचान कर संवड़ित किया जाना इस युग की आवश्यकता है। इस सुविचार को राँची से प्रतिभा सम्मान समारोह के माध्यम से विकसित किया गया जिसमें प्रत्येक वय के समस्त प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं का सम्मान, बिना किसी जाति/धर्म के भेद-भाव के किया