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IV Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements का गुरू-कार्य किया था, तो दूसरी ओर उनकी समृद्ध एवं ष्टशस्वी शिष्य परम्परा से भी समाज को रू-बरू कराया। सुप्रसिद्ध जैनदर्शन-विद स्व. पं. महेन्द्र कुमार जैन न्यायाचार्य की स्मृति में एक विशाल स्मृति-ग्रन्थ के प्रकाशन की प्रेरणा कर मात्र एक जिनवाणी-आराधक का गुणानुवाद ही नही हुआ, प्रत्युत नयी पीढ़ी को उस महान साधक के अवदानों से परिचित भी कराने का अनुष्ठान पूर्ण हुआ। इस श्रृंखला में स्व डॉ. हीरालाल जी जैन, स्व. डॉ. ए.एन. उपाध्ये आदि विश्रुत विद्वानों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोधपरक संगोष्ठियों की आयोजना के प्रस्तावों को पूज्य श्री ने एक ओर अपना मंगल आशीर्वाद दिया है दूसरी ओर जैन पुरातत्व के गौरवशाली पन्नों पर प्राचीन भारतीय इतिहासवेत्ताओं एवं पुरातत्त्वविदों को कंकाली टीले, मथुरा और कुतुबमीनार के अनबूझ रहस्यों की परतों को कुरेदने और उसकी वैभव सम्पदा से वर्तमान का परिचय कराने जैसा ऐतिहासिक कार्य भी पूज्य गुरुवर के मंगल आशीर्वाद से ही सभव हो सका
इस तपःपूत ने वैचारिक क्रान्ति का उद्घोप किया है इस आशा और विश्वास के साथ कि आम आदमी के समीप पहुँचने के लिए उसे उसकी प्रतिदिन की समस्याओ से मुक्ति दिलाने के उपाय भी संस्तुति करने होगे। तनावो से मुक्ति कैसे हो, व्यसन मुक्त जीवन कैसे जिए, पारिवारिक सम्बन्धो में सौहार्द कैसे स्थापित हो तथा शाकाहार को जीवन-शैली के रूप मे कैसे प्रतिष्ठापित किया जाय, आदि यक्ष प्रश्नों को बुद्धिजीवियों, प्रशासको, पत्रकारो, अधिवक्ताओ, शासकीय, अर्द्ध-शासकीय एवं निजी क्षेत्रो के कर्मचारियो व अधिकारियो, व्यवसायियो, छात्रो-छात्राओं आदि के साथ परिचर्चाओं, कार्यशालाओ, गोष्ठियों के माध्यम से उत्तरित कराने के लिए एक ओर एक रचनात्मक सवाद स्थापित किया तो दूसरी ओर श्रमण संस्कृति के नियामक तत्वो एव अस्मिता के मानदण्डों से जन-जन को दीक्षित कर उन्हे जैनत्व की उस जीवन शैली से भी परिचित कराया जो उनके जीवन की प्रामाणिकता को सर्वसाधारण के मध्य सस्थापित करती है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की अनुभव सम्पन्न प्रज्ञान सम्पदा को, गुरुवर ने आपदमस्तक झिझोड़ा है, जिसकी अद्यतन प्रस्तुति अतिशय क्षेत्र तिजारा में आयोजित जैन चिकित्सकों की विशाल संगोष्ठी थी जिसमें भारत के सुदूरवर्ती प्रदेशों से आये साधर्मी चिकित्सक बन्धुओ ने अहिसक चिकित्सा पद्धति के लिये एक कारगर कार्ययोजना को ठोस रूप दिया और सम्पूर्ण मानवता की प्रेमपूण सेवा के लिये पूज्य श्री की सन्निधि में अपनी वचनबद्धता को रेखांकित किया, जो श्लाघ्य है स्तुत्य है।