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________________ कारिका ५५] सत्याऽणुव्रत-लक्षण सत्याऽगुव्रत-लक्षण स्थूलमलीकं न वदति न परान्वादयति सत्यमपि विपदे । यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थलमृषावाद-वैरमणम् ॥६॥५५॥ (संकल्पपूर्वक अथवा स्वेच्छासे) स्थूल अलीकको-मोटे झूठको -जो स्वयं न बोलना और न दूसरोंसे बुलवाना है, तथा जो सत्य विपदाका निमित्त बने उसे भी जो स्वयं न बोलना और न दूसरोंसे बुलवाना है, उसे सन्तजन-प्राप्त पुरुष तथा गणधरदेवादिक---'स्थूलमपावाद-वैरमण'-सत्यारणुव्रत-कहते हैं।' ___व्याख्या-यहाँ स्थूल अलीक अथवा मोटा भूठ क्या ? यह कुछ बतलाया नहीं-मात्र उसके न बोलने तथा न बुलवानेकी बात कही है, और इसलिये लोकळ्यवहारमें जिसे मोटा झूठ समझा जाता हो उसीका यहाँ ग्रहण अभीष्ट जान पड़ता है। और वह ऐसा ही हो सकता है जैसा कि शपथ साक्षीके रूपमें कसम खाकर या हलफ उठाकर जानते-बूझते अन्यथा (वास्तविकताके विरुद्ध) कथन करना, पंच या जज (न्यायाधीश) आदि के पदपर प्रतिष्ठित होकर अन्यथा कहना-कहलाना या निर्णय देना, धर्मोपदेष्टा बनकर अन्यथा उपदेश देना और सच बोलनेका आश्वासन देकर या विश्वास दिलाकर झूठ बोलना (अन्यथा कथन करना)। साथ ही ऐसा भूट बोलना भी जो किसीकी विपदा ( संकट वा नहाहानि ) का कारण हो; क्योंकि विपदाके कारण सत्यका भी जव इस व्रतके लिए निषेध किया गया है तव वैसे असत्य बोलने का तो स्वतः ही निषेध होजाता है और वह भी स्थूलमपावादमें गर्मित है। और इसलिये अज्ञानताके वश (अजानकारी) या असावधानी (सूक्ष्मग्रमाद) के वश जो बात विना चाहे ही अन्यथा कही जाय या मुंहले निकल जाय उसका स्थूल-मपावादमें ग्रहण नहीं है; क्योंकि अहिंसाणुव्रतके लक्षणमें
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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