SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समीचीन-धर्मशास्त्र (८) कवि दामोदरने, चन्द्रप्रभचरितमें, लिखा है कि 'जिनकी भारतीके प्रतापसे-ज्ञानभण्डाररूप मौलिक कृतियोंके अभ्याससे-समस्त कविसमूह सम्यग्ज्ञानका पारगामी हो गया उन कविनायक-नई नई मौलिक रचनाएँ करने वालोंके शिरोमणियोगी समन्तभद्रकी मैं स्तुति करता हूँ।' यद्भारत्याः कविः सर्वोऽभवत्संज्ञानपारगः । तं कवि-नायकं स्तौमि समन्तभद्र-योगिनम् ॥ (E) वमुनन्दी प्राचार्यने, स्तुतिविद्याकी टीकामें, समन्तभद्रको 'सद्बोधरूप'- सम्यग्ज्ञानकी-मृर्ति-और 'वरगुणालय'-उत्तमगुणोंका आवास-बतलाते हुए यह लिखा है कि 'उनके निर्मलयशकी कान्निसे ये तीनों लोक अथवा भारतके उत्तर, दक्षिण और मध्य ये तीनों प्रदेश कान्तिमान थे-उनका यशस्तेज सर्वत्र फैला हुआ था ।' समन्तभद्रं सद्बोधं स्तुवे वर-गुणालयम् । निर्मलं यद्यशप्कान्तं बभूव भुवनत्रयम् ।। (१०) विजयवर्णीने, शृङ्गारचन्द्रिकामें, समन्तभद्रको 'महाकवीश्वर' बतलाते हुए लिखा है कि उनके द्वारा रचे गये प्रबन्धसमूहरूप सरोवरमें, जो रसरूप जल तथा अलङ्काररूप कमलोंसे सुशोभित है और जहाँ भावरूप हँस विचरते हैं, सरस्वती-क्रीडा किया करती है। -सरस्वती देवी के क्रीडास्थल (उपाश्रय) होनेसे समन्तभद्रके सभी प्रबन्ध (ग्रन्थ) निर्दोष, पवित्र एवं महती शोभासे सम्पन्न हैं।' समन्तभद्रादिमहाकवीश्वरैः कृतप्रबन्धोज्वल-सत्सरोवरे । लमद्रसालङ्कृति-नीर-पङ्कजे सरस्वती क्रीडति भाव-बन्धुरे॥
SR No.010668
Book TitleSamichin Dharmshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages337
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy