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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश । है आप उसे 'मुसलमान' समझते हैं ? और जिसे 'मुसलमान राजा' के नामसे पुकारा अथवा उल्लेखित किया जाता हो उसे 'हिन्द्र' खयाल करते हैं ? यदि नहीं तो फिर एक 'म्लेच्छ राजा' को म्लेच्छ न मानकर श्राप 'आर्य' कैसे कह सकते है ? 'हिन्दू' और 'मुसलमान' जिस प्रकार जातिवाचक शब्द हैं उसी प्रकार से 'मलेच्छ' भी एक जातिवाचक शब्द है। और ये तीनों ही राजा शब्द के पूर्ववर्ती होने पर अपने अपने उत्तरवर्ती राजाको जातिको सचित करते हैं। स्वयं श्रीजिनसेनाचार्य ने, अपने • हरिवंशपुराणमें, इस राजाको स्पष्ट रूपसे 'मलेच्छराज' लिखा है। यथा :-- चंपा-सरसि, संप्राप्य तस्यों सोमात्यदेहजाम् ।। ४ ।। तोयकीडा रतस्तत्र स हृतः सर्पकारिणा । विमुक्तश्च पपातासौ भागीरथ्यो मनोरथी ॥ ५ ॥ “पर्पटनटवीं तत्र म्लेच्छराजेन वीक्षितः । "परिणीय सुतां तस्य जराख्यां तत्र चावसत् ॥६॥ जरत्कुमारमुत्पाद्य तस्यामुन्नतविक्रमः । . इन पद्यों में यह बतलाया गया है कि-'चंपापीमें वहाँके मंत्रीकी पत्रीसे विवाह करके, एकदिन वसुदेव चंपा नगरीके सरांवरमें जलक्रीडा कर रहे थे, उनका शत्रु सूर्पक उन्हें हर कर लेगया और ऊपरसे छोड़दिया। वे भागीरथी (गंगा) नदी में गिरे और उसमें से निकल कर एक वनमें घमने लगे। वहां एक म्लेच्छ राजासे उनका परिचय हुआ, जिसकी 'जरा' नाम की कन्यासे विवाह करके वे वहाँ रहने लगे और उस स्त्री से उन्होंने 'जरत्कुमार' नामका पुत्र उत्पन्न किया।' 'मलेच्छसजसे श्रीजिनसेनाचार्यका अभिप्राय म्लेच्छजाति
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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