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________________ विवाह-क्षेत्र प्रकाश। घह ार्य तथा उच्च जाति का मनुष्य नहीं था । और इस लिये उसे अनार्य तथा ग्लेच्छ कहना कुछ भी अनुचित नहीं होगा। म्लेच्छोंका श्राचार आम तौर पर हिंसा रति, मांसभक्षण में प्रीति और जबरदस्ती दूसरों की धनसम्पत्तिका हरना, इत्यादिक होता है; जैसा कि श्राजिनसेनाचार्यप्रणीत श्रादिपुराणके निम्नलिखित वाक्य से प्रकट है:-- म्लेच्छाचारो हि हिंसायां रतिमांसाशनेऽपि च । बलात्परस्वहरणं निधूतत्वमिति स्मृतम् ।।४२-१८४ ॥ वसुदेवजी ने, यह सब कुछ जानते हुए भी, बिना किसी झिझक और रुकावट के बड़ी खशी के साथ इस म्लेच्छ राजा को उक्त कन्या से विवाह किया और उनका यह विवाह भी उस समय कछ अनुचित नहीं समझा गया । बल्कि उस समय और उससे पहले भी इस प्रकार के विवाही का श्राम दस्तर था। अच्छे अच्छे प्रतिष्टित, उच्चकुलीन और उत्तमातम परुषों ने म्लेच्छ गजानी की कन्याओं से विवाह किया, जिनके उदाहरणोंसे जैन-साहित्य परिपूर्ण है।" उदाहरण के इस अंश से प्रकट है कि लेखकन जितनी पार अपनी ओर से जरा के पिनाका उल्लेख किया है वह " म्लेच्छराजा" पद के द्वाग किया है, जिसमें ‘म्लेच्छ' विशेषण और 'राजा' रिशेप्य है ( म्लेच्छः राना म्लेच्छराजा) और उस का अर्थ होता है ‘म्लेच्छ जाति विशिष्ट राजाअथान म्लेच्छ जातिका राजा, वह राजा जिसकी जाति म्लेच्छ है, न कि यह गाजा जो आर्य जातिका होते हुए म्लेच्छों पर शासन करता है। परन्तु समालोचकजी ने दूसरे विद्वानों के अवतरणांको लेकर और उन्हें भी न समझ कर उनके शब्दछल से लेखक पर यह आपति की है कि उसने म्लेच्छखंडों पर
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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