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________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश। हुए उसके पद्य नं० ८८ से प्रकट.है। उसो पातको उन्होंने यहाँ पर इस पद के द्वारा व्यक्त किया है और उसे अपनी बहनों में इन्द्रा ( शची ) जैसी बतलाया है। वह कंस की वैसे ही मानी हुई-कल्पित को हुई बहन शो, यह अर्थ नहीं बनता और न उसका कहीं से कोई समर्शन होता है। देवको यदि कसकी कल्पित भगिनी थी तो उससे यह लाज़िमी नहीं प्राता कि वह कंस के भाई अनिमुक्तक की भी कल्पित भगिनी थी क्योंकि श्रतिमुक्तकजी ने उम्मी वक्त जिनदीक्षा धारण करली थी जबकि कलने मथुरा आकर अपने पिनाका वंदिगृहमें डाला था-और इसलिये कस ने यदि देवकीको अपनी बहन बनाया तो वह उसके बाद का कार्य हुअा। फिर अतिमुक्तक के भिक्षार्थ पाने पर कंसकी स्त्री ने उनसे यह क्यों कहा कि ' यह तुम्हारी बहन (स्वसा अथवा अनुजा) देवकी का श्रानन्द वस्त्र है ! इस वाक्यप्रयोग से ता यहो जाना जाना है कि अतिमुक्तकका देवकाके साथ भाई बहन का कौटुम्बिक सम्बन्ध था और इसी सं जीवद्यशा निःसंकोच भाव से उस सम्बन्ध का उनके सामने उल्लेख कर सकी है अथवा उक्त वाक्य के कहने में उसकी प्रवृत्ति हो सकी है । यदि यह कहा जाय कि जिस प्रकार दूसरे के पत्र को गोद ( दत्तक) लेकर अपना पत्र बना लिया जाता और तब कटम्बवालों पर भी उस सम्बध की पाबन्दी होती है-वे उसके साथ गोद लेने वाले व्यक्ति के सगे पुत्र जैसा ही व्यवहार करते है-उसी प्रकार से कम ने भी देवकी को अपनी बहन बना लिया था तो प्रथम तो इस प्रकार से बहन बनानका कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता-हरिवंशपुराण (जिनसेनकत) और उत्तरपुराण जैस प्राचीन ग्रन्थों से यही पाया आता है कि देवकी उन राजा देवसनकी पुत्री थी जो कंस के पिता उग्रसेन के सगे भाई थे-दूसरे, यदि ऐसा मान भी लिया
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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