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विवाह-क्षेत्र प्रकाश
बिलकु न झूठ है ) उल्लेख करके पुस्तक को समाप्त करदिया था लेकिन फिर बाबू साहबको खयाल आया कि भतोजोके साथभी शादी उचित बतादी तया नीच भील और व्यभिचारजात दस्सों के साथ भी जायज़ बतादी किन्तु वेश्या तो रह ही गई यह सोचकर आप ने फिर शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरणका दूसरा हिस्सा लिखा और खबही वेश्यागमनकी शिक्षा दी है"।
इसी तरहके और भी कितनेही वाक्य समालोचना-पुस्तक में जहाँ तहाँ पाये जाते हैं, जिनके कुछ नमने इस प्रकार हैं:(१) "लेकिन बाब जी को लोगों के लिये यह दिखलाना था
कि भतीजी के साथ विवाह करने में कोई हानि नहीं है"।
(पृ०४) (२) "उन्हें [षाबू साहव को] तो जिस तिस तरह अपना
मतलब बनाना है और कामवासना की हवस मिटाने के लिये यदि बाहरसे कोई कन्या न मिले तो अपनीही बहिन भतीजी आदि के साथ विवाह करलेने की आज्ञा दे देना
(३) देवकी की कथा से] " यह सिद्ध करना चाहा है कि
विवाह में जाति गोत्र का पचडा व्यर्थ है। यदि काम वासना की हवस पूरी करने के लिये अन्य गोत्रकी कन्या न मिले तो फिर अपनी ही बहिन भतीजी आदिसे विवाह
कर लेने में कोई हानि नहीं है ।" (प० ३७) (४) " जराकी कथासे श्राप सिद्ध करना चाहते हैं कि भंगी
चमार श्रादि नीच मनुष्य व शूद्रों के साथ ही विवाह कर
लेने में कोई हानि नहीं है ।" (पृ. ३८) (५) "बाबू साहब को तो लोगों को भ्रममें डालकर और
सबको वेश्यागमन का खुल्लम खुल्ला उपदेश देकर अपनी