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________________ પછ विवाह-क्षेत्र प्रकाश | पुत्री और वसुदेवकी भतीजी थी। उनका वह विचार लेख श्रावण मासके 'पद्मावतीपुरवाल' अंक नं० ५ में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद सितम्बर सन १६२० के 'जैनहितैषी' में यही लेख प्रकाशित हुआ और वहाँ से चार वर्षके बाद अब इस पुस्तकमै उद्धृत किया गया है। 26 इस तरह पर देवकी और वसुदेवके सम्बंध का यह विषय इस पुस्तक मे कोई नया नहीं है बल्कि वह समाज के चार प्रसिद्ध पत्रों और एक ग्रन्थ में चर्चा जाकर बहुत पहलेसे समाजके विद्वानोंके सामने रक्खा जा चुका है और उसकी सत्यता पर इससे पहले कोई आपत्ति नहीं कीगई श्रथवा यो कहिये कि समाज के विद्वानोंने उसे आपत्ति के योग्य नहीं समझा। ऐसी हालत में समालोचकजीका इस विषयको लेकर व्यर्थका कोलाहल मचाना और लेखकके व्यक्तित्व पर भी आक्रमण करना उनके प्रकाण्डताण्डव तथा अविचार को सूचित करता है । लेखकने देवकी के विवाह की घटनाका उल्लेख करते हुए लिखा था देवकी राजा उग्रसेनकी पुत्री, नृपभांजक वृष्टिकी पौत्री और महाराज सुवीरकी प्रपौत्री थी । वसुदेव राजा अन्धकवृष्टिके पुत्र और नूप शूरके पौत्र थे । ये नृप 'शर' और देवकीके प्रपितामह 'सुवीर' दोनों सगे भाई थे। दोनोंके पिताका नाम ' नरपति' और पितामह ( बाबा ) का नाम 'यदु' था । ऐसा श्रीजिनसेनाचार्यने अपने हरिवंशपुराण में सूचित किया है और इससे यह प्रकट है कि राजा उग्रसेन और वसुदेवजी दोनों आपस में चचाताऊज़ाद भाई लगते थे और इसलिये उग्रसेनकी लड़की 'देवको' रिशते में वसुदेवकी भतीजी (भ्रातृजा) हुई। इस देवकीसे वसुदेवका विवाह हुआ, जिससे स्पष्ट है कि इस विवाह में I
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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