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________________ १५२ विवाह क्षेत्र प्रकाश। गोत्रमे विवाह सम्बंध करते हैं - तब उनके पिछले गोत्रोंकी दृष्टि से यह कहा जासकता है कि वे सगोत्र विवाह भी करते हैं क्योंकि यह प्रायः असंभव है कि उन सब नगर ग्रामों में पहले से एक दूसरेसे भिन्न अलग अलग गोत्रके ही लोग निवास करत हो । राजमलजी बडजत्याने खडेलवाल जैनोंका जो इतिहास लिखा है उससे तो यह स्पष्ट मालम होता है कि कितने ही वंशों के लोग अनेक प्रामों में रहतेथे, जैसे चौहान वंशके लोग खंडेलानगर, पापडी, भैंसा, दरड्यो, गदयो, पहाडी, पांडणी. छावड़ा, पांगुल्यो. भलाणी, पीतल्यो, बनमाल, अरडक, चिरडकी सांभर और चाचण्या में रहते थे । इन नगर ग्रामों के निवासियों के लिये क्रमशः सहा, पापडीवाल, भैसा (बडजात्या), दरड्या, गदैया, पहाड्या, छाबडा, पांगल्या भूलण्या, पीतल्या बनमाली, अईक, चिरडक्या, सांभर्या और चौवाण्या गोत्रोंकी सृष्टि कीगई । इन गोत्रोंके खंडेलवाल क्या अापसमें विवाह सम्बंध नहीं करते ? यदि करते है तो चौहानवंशके मलगोत्रकी दृष्टि से कहना होगा कि ये एकही गोत्रमें विवाह करते हैं अथवा यो कहिये कि पिछली गोत्र कल्पनाको निकाल देने पर उनके वे विवाह सगोत्र विवाह ठहरते हैं। दसरे गोगोंकी भी प्राय: ऐसी ही हालत है । इसके सिवाय, x यह दूसरी बात है कि कुछ रिश्तेदारों के गोत्र भी राले जाते हैं। हरन्तु उससे किसी खास नामके गोत्रोंका नियमित रूपसे टाला जाना लाजिमी नहीं आता हो सकता है कि एक विवाह के अवसर पर किसी रिश्तेदारका जो गोत्र टाला गया वह कालान्तर में न टाला जाय अथवा उसी गोत्रमें कोई दुसरा विवाह भी कर लिया जाय ; क्याक रिश्तेदारोकी यह स्थिति उत्तरोत्तर संसतिमें बदलती रहती है।
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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