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________________ म्लेच्छोंसे विवाह । ११३ कथन-टाइपका एक नमना है-उसकोखास बानगी है । खाली इस बातको छिपाने के लिये कि 'जरा' ऐसे मनुष्य की कन्या थी जो म्लेच्छ होनेसे हिंसक और मांस-भक्षक कहा जासकता है आपने म्लेच्छाचारको हो उन्नर देना चाहा है, यह कितना दु साहस है! म्लेच्छोका प्राचार तो हिन्दू ग्रन्या से भी मांस भक्षणादिक रूप पाया जाता है, जैसा कि प्रायश्चित्तत्व' में कहे हुए उनके बौधायन प्राचार्य के निम्न वाक्यसे ग्रकटहै : गोमांस खादको यस्तु विरुद्धं बहु भापते । सर्वाचारविहीनश्च म्लेच्छ इत्यभिधीयते ।। अर्थात्--जो गो-मांस भक्षण करता है, बहुत कुछ विरुद्ध बोलता है और सर्व धर्माचारसे रहित है उसे म्लेछ कहन है । अब समालोचक जी की उस सफाईका भी लीजिय जो श्राएन उन म्लेच्छाके प्राचार-विषयम पंश की है, और वह आदिपुराणके निम्न दो श्लोक है, जिनमें म्लेच्छरवगडोके उन स्नेच्छोंका उल्लेख किया गया है जिन्ह भरत चक्रवर्तीके सेनापतिने जीत कर उनसे अपने स्वामीक भाग-योन्य कन्यादि रत्नोंका ग्रहण कियाथा: - " इत्युपायैरुपायज्ञः साधयन्म्लेच्छभू भुजः। तेभ्यः कन्यादिरत्नानि प्रभोर्नोग्यान्यपाहरत् ।।१४१ धर्मकर्म-वहिता इत्यमी म्लेच्छका मताः। अन्यथान्यैः समाचारैरायर्यावर्तेन ते समाः।।१४२" इन पद्योंमें से पहले पद्यमे तो म्लेच्छ राजाओंको जीतने और उनसे कन्यादि रत्नोंके ग्रहण करनेका वही हाल है जो ऊपर बतलाया गया है और दूसरे पद्यमें लिखा है कि लोग धर्म (अहिंसादि) और कर्म (निरामिष भोजनादिरूप
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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