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________________ १०६ विधाह क्षेत्र-प्रकाश। किसी मलेत की ही कन्या होगी तो मलेक्ष भी कितने ही प्रकारके शास्त्रों में कहे हैं। जिनमें एक क्षेत्र मलेक्ष भी हैं जो कि देश अपेक्षा मलेत कहाते हैं। लेकिन, कुलाचार बुरा ही होता हैं ऐसा नियम नहीं । जैले पंचाब में रहने वाले हरएक कौम के पंजाबी कहाते हैं, और बंगाल में रहने वालों को बंगाली तथा मदरास में रहने वालों को मदरासी कहते हैं किन्तु उन सब का प्राचरण एकसा नहीं होता । इन देशों में सब ही ऊँचनीच जातियों के मनप्य रहते हैं फिर यह कहना कि अमुक मनप्य एक मदरासी या पंजाबी लड़की के साथ शादी कर लाया, यदि उसी की जाति की ऊँच खानदानकी लड़की हो तो क्या हर्ज है। इसलिये बाबू साहब जो लिखते हैं कि वह कन्या नीच थी यह बात सिद्ध नहीं हो सकती नीच हम जब ही मान सकते हैं जबकि कन्याके जीवनचरित्रमें कुछ नीचता दिखलाई हो।" अपने इन वाक्यों द्वारा समालोचकजी ने यह सूचित किया है कि घम्लेच्छ खंडो (म्लेच्छ क्षेत्रों) को पंजाब, बंगाल तथा मदरास जैसी स्थितिके देश समझते है, उनमें सबही ऊँच नीच जातियों के आर्य अनार्य मनष्योका निवास मानते है और यह जानते हैं कि वहाँ ऐसे लोग भी रहते हैं जिनका कुलाचार बरा नहीं है। इसी लिये संभव है कि घसदेवजी वहीं से अपनी ही जातिकी और किसी ऊँचे वंशकी यह कन्या (जरा) विवाह कर ले श्राप हो। परन्तु समालाचकजीका यह कोरा भ्रम है और जैनशास्त्रोसे उनकी अनभिज्ञताको प्रकट करता है ! वसुदेव 'जरा' को किसी म्लेच्छ-खंडसे विवाह कर नहीं लाए, बल्कि बह चंपापुरीके निकट प्रदेशमै भागीरथी गंगाके श्रासपास रहने वाले किसी नेच्छ राजाकी कन्याथी, यह बाततो ऊपर श्रीजिन
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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