SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म्लेच्छोंसे विवाह । १०५ के म्लेच्छराजा 'सिल्यकस' की कन्यासे विवाह किया था। ये सम्राट चंद्रगुप्त भद्रबाहु श्रुतकेवलीके शिष्य थे, इन्होंने जैनमुनि दीक्षा भी धारण की थी, जिसका उल्लेख कितने ही जैन शास्त्रों तथा शिलालेखों में पाया जाता है। और जैनियों की क्षेत्रगणना के अनमार सीरिया भी श्रायखगडका ही एक प्रदेश है। ऐसी हालत में यह बात और मी निर्विवाद तथा निःसन्देह हो जाती है कि पहले आर्यखण्ड के ग्लेन्छों के साथ भी पार्यों अथवा उच्च कुलीनों का विवाह सम्बंध होता था। हमारे समालोचकजी का चित्त 'जग' के विषय में बहुत ही डांवाडोल मालम होता है.-वे स्वयं इस बात का कोई निश्चय नहीं कर सके कि जरा किस की पुत्री थी-कभी उन का यह खयाल होता है कि जरा का पिता बेच्छ या भील न होकर म्लेच्छों अथवा भीलों पर शासन करने वाला कोई आर्य राजा होगा और उमीन अपनी कन्या वसुदेवको दी होगा; कभी वे सोचत है कि यह कन्या वसुदेवका दी तो होगी भील ने ही परन्तु वह कहीं से उसे छीन लाया होगा-उसकी वह अपनी कन्या नहीं होगी-:और फिर कभी उनके चित्त में यह याल भी चक्कर लगाता है कि शायद जरा हो तो म्लेच्छकन्या ही, परन्तु वह क्षेत्र म्लेच्छ की-मच्छखंड के म्नेछ कीकन्या होगी, उसका कुलाचार बुरा नहीं होगा अथवा उसके आचरण में कोई नीचता नहीं होगी ! खेद है कि ऐसे अनिश्चित और संदिग्ध चित्तवत्ति वाले व्यक्ति भी सनिश्चित यातो की समालोचना करके उन पर श्राक्षाप करने के लिये तय्यार हो जाते है और उन्हें मिथ्या तक कह डालने की घटता कर बैठते हैं ! अस्तु: समालोचकजी, उक्त अवतरण के बाद, अपने खयालों की इसी उधेड़बन में लिखते हैं:___यदि थोड़ी देर के लिये यह मान लिया जाये कि
SR No.010667
Book TitleVivah Kshetra Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1925
Total Pages179
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy