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________________ ( ६० ) प्रार्यमतलीला ॥ Rau जिसके दस खाती अनाज हो। करने वाले बुद्धि और प्रजासे युक्त श्राप ___ ऋग्वद चौथा मंडल सूरू २४ ऋ२७ को गौओं को गतियोंके सदृश मच्छ "जो राजा प्राज...एश्वर्य युक्तके लिये प्रकार चलने वाली भमियां और सा ( सोमम् ) ऐश्वर्यको उत्पन्न करें पाकों मयं वाली बछड़ोंकी विस्तृत पंक्तियों को पकायें और यचों को भो......बल के सदृश आपकी प्रजा हैं।" युक्त मनुष्य को धार गा करै वह बहुत | ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त २० ऋ०४ जीतने वाली सेनाको प्राप्त होवे।| "हे विद्वानों में अग्रणी जनों, जिसराजा | ऋग्रद सप्तम मंडल सूक्त २७ ऋ० १ | के होने पर पाक पकाया जाता है भंजे "हे राजा जी शत्रों की हिंसा करने हुए अन्न हैं चारों ओर से अत्यंत वाले वन मे कामना करते हुए श्राप मिला हुआ उत्पन ( सोम ) ऐश्वर्यका मनप्य जिस में बैठने वा गौये जिम में योग वा ओषधिका रस होता है...... विद्यमान ऐसे जाने के स्थान में हम यह पाप हम लोग के राजा दूजिये।" लोगों को अच्छे प्रकार सेधिये ।" (नोट) यह हम अगले लेखों में सिद्ध । ( नोट ) ग्रामीण लोगोंके बैठने का करेंगे कि भंगको सोमरस कहते थे देखो बह ही मकान होता है जिस मैं गौ वेदोंके ममय में जिम राजाके राज्य आदि पशु बांधे जाते हैं। होने के समय में भोजन पकाया जादै __ ऋग्वेद छठा मंडन्न सूक्त १५ ऋ० १६ | अ | और भना हुमा अनाअभीर भंगवाटी। "हे सुन्दर सेना वाले विद्वान् राजन् । | आवै उसकी प्रशंमा होती थी | ऋग्वद छठा मंडल सूक्त ४५ ऋ० २४/ प्रसिद्ध आप मम्पर्ण विद्वानों वा बीर जी दष्ट चोरोंको मारने वाला राजा परुषोंके साथ बहुत अरके वस्त्रों से यदि वा काँसे अत्यंत विभाग कर युक्त गृह में वर्तमा हो।” में वान्लेके प्रशंमिन गौन्द्यिमान और (नोट) यह हमने पहले सिद्धकिया चलते हैं जिम में उसको प्राप्त होता! किटानों के माप में वस्त्र पहननका है वह ही हम लोगों को स्वीकार कर | प्रवाद बहुत कम था और राजा मा र राजा आ. (नीट) जिम राजाके यहां गऊ और दिनई दबी जो बस पहनते थ चढनेके वास्ते सवारी उसकी प्रशंसा 'उनको नरहन प्रमा होती थी और ऐया की गई है। मानम होता है फि ईका कपडा बु- ऋग्वेद प्रथम मंडल सक्त १३४ ऋ०६ न की विद्या उनकी मान्य नहीं शो "हे पान बनवान...जो आपकी ममस्त बरमा उन में ही काजल आदिक बा- गए हो भोगने के कान्तियुक्त पतको लेते थे। | पूरा करती और अच्छे प्रकार भोजन ऋग्वेद छठा मंडल यन्स २४ ऋ० ४ करने योग्य दुग्धादि पदार्थ को पूरा "हे बहुन मामध्यवान दत्रके नाश करती ।" अक -.- --.-mweart.AAR.KMELAnnadaan a
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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