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________________ ऋग्वेद पंचम मंडल सूक्त ३१ "सेनाका देश गौश्रांका पालन बाला ।,, आर्यनतलीला ॥ ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ११५ ऋ० २ " हे सूर्य के समान वर्तमान राजन् श्राप के जी प्रवल ज्वान वृषभ उत्तम अन्न का योग करने वाले शक्ति बन्धक और रमण साधन रथ और निरन्तर गमनशील घोड़े हैं उनको यत्नवान करो अथात् उन पर चढ़ो उन्हें कार्य कारो करो ।” ग्रामीण लोगों में जैसे खमी आदिका काम अन्य मनुष्यों अधिक जानने वाला से कुछ बुद्धिमान गिना जाता है। इस ऋग्वेद मप्तन मंडल सूक्त १८ ऋ० १६ | ही प्रकार वेदोंमें जिनको जो ऐश्वर्य युक्त शत्रुछोंको विदीकर | विद्वान् वर्णन किया गया है ने वाला शुभ गुणों में व्यास राजा पके हुए दूधको पनि वा वर्षने वा तल करने वाले सेनापतिको पाकर अनैश्वर्य को दूर करता है वह ऐसे ही ग्रामीण लागधे यथा: " 66 ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ४२०८ हे सभाध्यक्ष... उत्तम यत्र यदि औषधि होने वाले देश की प्राप्त कीfaa .. ऋग्वेद छडा मंडल सूक्त ६० ऋ० ७ “हे सुबकी भावना कराने वाले सूर्य और faith समान ममा सेनाघोशो आप दोनों ओ प्रशंसा ये प्रशंसा करती हैं उनसे सब ओर से उत्पन्न किये हुए दूध आदि रमको पिश्री ।" .. ० १ करने ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त २१ ऋ२९३ "जो पत्रित्र हिंमा अर्थात् किमी से दुख को न प्राप्त हुआ राजा जिनसे अच्छे जी आदि अन्न उत्पन्न हों उन जलों के निकट बनता है। ( ६१ ) ऋग्वद प्रथम मंडल सूक्त १३८ ऋ०४ "हे पुष्टि करने वाले जिनके दूरी (बकरी) और घोड़े विद्यमान हैं ऐसे ।,, ऋग्वेद प्रथम मंडल मुक्त ५३ ० २ विद्वानोंकी पूजा स्तुति करते हैं जो कृषि शिक्षा दें सित्रोंके मित्रों दूध देने वाली गौके सुख देने वाले द्वारों को जाने उत्तम यव आदि अन्न और उत्तम धनके देने वाले हैं । आनंद प्रथम मंडल सूक्त १४४ ऋ० ६ "हे सूपके समान प्रकाशमान विद्वान् आप ही पशुओं की पालना करने वाले के ममान अपने से अन्तरिक्ष में हुई बृष्टि आदि के विज्ञान को प्रकाशित करते हो । ०५ ऋग्वेद दूसरा मं " हल मूक्त 9 हे भव विषयों को धारण करने वाले विद्वान् जो मनोहर गोत्रों से वा बेगों से वाजिन में शा ठ सत्यासत्य के निर्णय करने वाले चरमा हैं, उन बाणों से बुलाये हुये आप हम लोगोंके लिये सुख दियेहुए हैं मो हम लोगोंसे महकार पाने योग्य हैं,, ०६ ऋग्वेद दूसरा मंडल सूक्त ܕ ܙ
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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