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________________ भार्यमतलीला। वालोंको दूधको दुहमा प्रादिक भी न- नहीं हुई है, उनके बास्ते हम यहां हीं पाता था। तक लिखना चाहते हैं कि वेदोंके गीतों जिस प्रकार खेती करने वाले ग्रा- | के ग्रामीण मनुष्य अपने ग्रामके मुखिमीणा लोग पान कल अपना बैठना | या वा चौधरी या मुकद्दम वा पटेलको उठना उम ही मकानमें रखते हैं जिम ही राजा कहते थे। वेदों में राजाका में डंगर ( पशु) बांधे जाते हैं और व- बहुत वर्णन है और राजाकी प्रशंसा ही पर अपने गंवार गीत भी गाते र- | में ही बहुधा कर वेद भरा हुआ है पहते हैं इस ही प्रकार वेदों के वनाने रन्त जिम प्रकार अधिक खेती और श्रवाले करते थे धिक पशु रखने वाले ग्रामीणो वेदों अग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १७३ ऋ० १ | में राजा माना गया है ऐसा ही सदों "जो सुख सम्बन्धी वा सुखोत्पादक में उनकी ग्रामीण बातोंकी प्रशंसा की अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त प्राकाशके बीच में | गई है। इस विषय में हम स्वामी दया साध अर्थात् गगन मंडलमे च्याप्त साम | नन्द सरस्वतीजीके वेद भाष्यके हिन्दी गान को विद्वान् आप जैसे स्वीकार अर्थों से कुछ वाक्य नीचे लिखते हैंकरें वैसे गावें और अन्तरिक्षमें जो क | ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त ११७ ऋचा५ रणें उन के ममान जो न हिमा करने | | "हे दुःखका नाश करनेवाले कृषि कर्म योग्य दूध देने वाली गौये मनोहर जि-. | की विद्यामें परिपूर्ण ममा सेनाधीशो ममें स्थित होते हैं उम घरको अच्छे | तुम दोनों प्रशंसा करमेके लिये भमिके प्रकार सेवन करें उम मामगान और ऊपर रात्रि में निवास करते और सुख उन गौत्रों को हम लोग मराहें उन का सत्कार करें॥" समाते हुए के ममान वा सूर्यके समान | और शोभाके लिये सुवर्णके ममान आयमत लाला। देखने योग्य रूप फारेसे गोते हुए खेत को ऊपरसे बोओ।" प्यारे प्रायां भाईयो ! हमने स्वामी | ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त ४७ ऋचा २२ दयानन्द सरस्वती के भोंके अनुम र "हे सूर्यके सदृश अत्यन्त ऐश्चर्य में यक्त वेदोंके वाक्यों से स्पष्ट मिद्ध करदिया | आ आपके बहुत अन्नोंसे युक्त धन की है कि वदोक गीतों में ग्रामीण लोगों | दशा कोशों ग्वजानोंको प्राप्त होनेवाने अपने नित्य के व्यवहार के गीतगाये | ली भमियों की स्तुति करनेवाला ।” हैं इससे आपको विदोंको स्वयम् पढ़कर ( नोट ) आजकल रैली ब्रादर कठों देखने और जांच करनेका शौक अवश्य रुपयामा अन्न हिन्दुस्तानसे विलायत पैदा होगया होगा जिन भाइयोंको को ले जाता है परन्त वेदोमें उसकी अव भी वेदोंकी जांच करनेकी उसजना सबसे ज्यादा ऐश्वर्यवान माना गया है
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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