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________________ ( ५८ ) आर्यमनलीला । "हे बल पराक्रन और अनादि प. शेष वृक्षको काटते हैं और जो घोडे के दार्थों का पालन करने और कराने वा-लिये पकानेको धारण करते और पष्टिक ले विद्वान त बस्त्रोंको धारण कर ही। रते हैं। जो उनके बीच निश्चयसे सब भोर | हम लोगोंके इम प्रत्यक्ष तीन प्रकारके से उद्यमी है वह हम लोगोंको प्राप्त होवे। यज्ञको मिद्ध कर। , __ "हे विद्वान इस शीघ्र दूसरे स्थानको नोट इससे विदित होता है कि पहुंचाने वाले बलवान घोडेकी जो अउस समय में मनुष्य वस्त्र नहीं पहनते | नत च्छे प्रकार दी जाती है और घोड़ों को थे इस ही कारणा यज्ञके समय बस्न प दमन करती अर्थात् उनके बलको दहन कर पाने पर जोर दिया गया है। खाती हुई लगाम है जो शिरमें उत्तम __ ऋग्वेद छठा मंडल सूक्त २८ ऋ०६ | व्याप्त होने वाली रस्मी है अथवा नो " उत्तम प्रतीत कराने वाले द्वार आदि इमीके मुखमें तृण वीरुध घास अच्छे जिस में उम कल्यान करने शुद्ध वायु प्रकार भरी होघं समस्त तुम्हारे पदार्थ जल और वृक्ष पाले गृहको करिये।, विद्वानों में भी हों।" ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त ५५ ऋ०५-८ | " हे घोडेके सिखाने वाले शीघ्र जाने "जो मनष्य जैसे मेरे घर में मेरी मा- | वाले घोडोंका जो निश्चित चलना नि. ता सब ओरसे सोवे पिता मोव कुत्ता सोवे प्रजापति मोवे मब संबन्धी मछ| श्चित बैठना नाना प्रकार मे चलाना फिराना और पिछाड़ी बांधना तथा प्रारसे मोवे यह उत्तम विद्वान् मोवे | उमको उढ़ाना है और यह घोड़ा जो वेमे तुम्हारे घरमें भी मोवें।, “हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग जो अ-पाता आर जा घासको खाना है व सतीव सब प्रकार उत्तम सुखोंकी प्राप्ति मस्त उक्त काम तुम्हारे हों और यह | कराने वाले घरमें सोती हैं या जो प्रा | समस्त विद्वानों में भी हों।" प्ति कराने वाले घरमें सोती वा जोप- (नोट) इससे विदित होता है कि लंग मोने वाली उत्तम स्त्री विवाहित घोडे की माई मीका काम उम समय बतथा जिन का शुद्ध गन्ध हो उन मदों हुत अद्भुत समझा जाता था । को हम लोग उत्तम घरमें सुलावे वैसे | ऋग्वेद तीमरा मंडल सूक्त ५३ ऋ० १४ तुम भी उत्तम घरमें सुलानो, “हे विद्वान् ! आपके अनार्यदेशोंमें ऋग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६२ ऋ०६- बमने वालों में गायोंसे नहीं दग्ध प्रा८--१४ दिको दुहते हैं दिनको नहीं पाते हैं को खम्भके लिये काष्ठ काटने वाले वे क्या करते वा करेंगे। और भी जो खम्भेको प्राप्त कराने वाले (मोट ) इससे विदित होता है कि जन पोहों के बांधनेके लिये किसी वि- उस समय ऐसे भी देश जहांके रहने
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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