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________________ मार्यमतलीला॥ ( ५७ ) करके उनकी मवा उत्तमताके भाच रक्षा ने अतिथून काट के उखनी मूमन मिकरो और अच्छे विचारसमे युक्ति के साथ किये हों जो हमारे ऐश्वर्य प्राम कपदार्थमिद होने के लिये इससोनित्य राखाले व्याहार के लिये आज मही चलाया करो-भावार्थ-भारी से प- धुर आदि प्रशंसनीय गुगणवाले पदाशों स्था में गड़ा करके भमि में गाडोमा मिह करने के हेतु होते होंवे मभमिसे कुछ ऊंचा रह उसमें अन्न स्या- दा मनन्धों को माधने योग्य हैं। पन करके मूमल से धमकी कटो।" ऋग्वद प्रथम मंडल मुक्त १६१ ऋ०८ __ "हे"ऐश्वर्य वाले विद्वान् मनाय तुम हे उत्तर धनुषवाला में कुशल अच्छे दो अंघों के ममान जिम व्यवहार में वैद्यो, तुम पथ्य भोऊन वाहनेवाअच्छे प्रकार वा प्रसार अलग २ करनालो से अमाको पिओ इस मज के के पात्र अपांत् शिल घट्ट होते हैं उन! तृों ने शुद्ध निधे हुए जल को पिना को अच्क प्रकार मिद करके शिलबह अथवा नी पिनो यस प्रकार से ही से शुद किये हुए पदार्थों के नकाश कहो औरा को उपदेश देओ।" स मारको प्राप्त हो और उत्तम विचार ऋग्वेद प्रथम मंडल मक्त १२४ से उमी को बार बार पदार्थों पर ध. १ ११ “जमे यह प्रभाव होला लाली ला। भावार्थ । एक तो पत्थरकी शिला लिये हुए सूर्यको किरणोंके सेनाके सनीच रक्वं और दमरी ऊपर से पीमने मान ममूहको जोड़ती और पहले बके लिये यहा जिमको हाथ में लेकर ढ़ती ने पूरी चौबीम ( २४ ) वर्ष । पदार्थ पीसे जांय इनसे प्राधि प्रादि की बान-स्त्रो सान रंगके गौ आदि पदार्थ पीमकर खावं यह भी दृमरा पशुओं के समूहको जोड़नी पीछे उन्नति माधन उखली मूमन के ममान धनना या प्राप्त हानी--, चाहिये।" । (नोट) किमी गांवके रहने वाले कवि | हे ( इन्द्र ) दुन्द्रियों को स्वामी जीवने या उपरोक्त प्रशंसा पशु चराने बात शिम कर्म में घर के सील स्त्रियां लोखी को की है ।। पनी संगि स्त्रियों के लिये उक्त नव बदनीपरा मंडल मुक्त ३० ऋ० २ सों से मिट्ट की दुई विद्या को "वत्रों को श्रीढ़ती हुई सुन्दर खी हाल ना निकलनादि क्रिया करनी हो- के तुल्य ॥" ती है वैसे उन विद्या को शिक्षा अ (नोट ) इससे विदित होता है कि ! हण करती और कराती हैं नल को वर मभय वस्त्र पहनने का प्रचार बह. भनेक तर्कों के माघ सुनो और हुमत नहीं हुआ था जो स्त्री वस्त्र पहनका उपदेश करो।" ती थी वह प्रशंमा योग्य होती थी । जो रस खो चने में चतुर बड़े विद्वानों ऋग्वेद प्रथम मंडग मूक्त २६ ऋ. १ ।
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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