SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 8 ) भार्यमतलीला। के हिन्दी अर्थों में से हम कुछ वाक्य ! जिस पूर्वोक्त वायु और अनिके गुणों इस विषयके नीचे लिखते हैं:- को प्रकाशित तथा सब जगह कामोंमें ऋग्वेद सप्तम मण्डत्व सूक्त २ ऋथा ४ प्रदीप्त करते हो उन को गायत्री छन्द हे मनुष्यों जैसे बिद्वानों के समीप वाले वेदके स्तोत्रों में षड्ज प्रादि स्वपग पीछे करके सन्मुख घोटूं जिनके रोंमें गानो--" हों वे विद्यार्थी विद्वान होकर सत्य! ऋग्वेद मरा मंडल सूक्त ४१ ऋ० १९ का सेवन करते और विद्याको धारण “ हे स्त्री पुरुषो जो सुख की सम्भाकरते हुए अन्न के साथ उत्तम घृत वना कराने वाले दोनों स्त्री पुरुष यन्त्र प्रादि को अग्निमें छोरते हैं , की विद्याओंको प्राप्त होते और इस्य | ऋग्वेद प्रथम मंडल मूक्त १२ ऋ० ५.११. / द्रव्यको पहुंचाने वाले अग्नि को प्राप्त जिसमें घी छोड़ा जाता है वह अ- होते उन्हीको हम लोग अच्छे प्रकार नि राक्षसोंको विनाश करती है--“भी-| स्वीकार करते हैं-" सिक अनि अच्छी प्रकार मन्त्रोंके न-! वेदोंके गीत बनाने वालों ने केवल | वीन २ पाठ तथा गान युक्त स्तुति और अग्निही की प्रशंसा में गीत नहीं बगायत्री छन्द वाले प्रगाथोंसे गुणों के साथ नाये हैं बरण जो जो बस्तु उन को ग्रहण किया हुआ उक्त प्रकारका धन उपकारी जात होती रही हैं उस ही और उक्त गण वाली उत्तम क्रियाको | | को पूजने लगे हैं और उस ही के विअच्छी प्रकार धारण करता है-" पप गीत जोड़ दिया है। दृष्टान्तरूप ऋग्वेद प्रथम महल सूक्त १३ ऋ०६८ जल की स्तुतिका एक गीत हम स्वामी "हे विद्वानो ! आज यज्ञ करने के दयानन्दजीके वेद भाष्यके हिन्दी अनुलिये घर धादिके अलग ३ मत्य सुख बादमे लिखते हैं और जल के वृद्धि करने वाले तथा प्र. ऋग्वेद मप्तम मंडल सूक्त ४ ऋचा २ काशित दरबाजोंका सेवन करो अर्थात् “ हे मनप्य जो शुद्ध जल चते हैं अथवा अच्ची रचनासे उनकी बनाओ मैं इस खोदने से उत्पन्न होते हैं वा जो पाप 3| घर में जो हमारे प्रत्यक्ष यजको प्राप्त त्पन्न हुए हैं अथवा समुद्र के लिये हैंवा जो करते हैं उन सुदर पूर्वोक्त सात जीभ, पवित्र करने वाले हैं वह देदीप्यमान पदार्थीका ग्रहण करने, तीव्र दर्शन देने जल इस संमारमें मेरी रक्षा करें-" और दिव्य पदार्थों में रहने वाले प्र- नदी की प्रशंसा वेदों में इस प्रकार सिद्ध और अप्रसिद्ध अग्मियों को उप- की गई है-- कारमें लाता हूं। ऋग्वेद सप्तम मंडल सूक्त ५० प्रा० ४ ऋग्वेद प्रथम मंडल मक्त २१ ऋ०२ | "जो जाने योग्य नीचे वा अपरसे "हे यत करने वाले ममुष्यो ! तुम देशों को जाती हैं और जो जलसे भरी
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy