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________________ प्रार्यमतलीला ॥ (४५) Aana बा जल रहित हैं वे सब नदियां ह-, परतन्त्र करने में वे दूरसे सिंहके सदृश मारे लिये जलसे सींचती हुई वा तृप्त कम्पाते वा चलते हैं और पर्जन्य वकरती हुई भोजनादि व्यवहारों के र्षाओं में हुए अन्तरिक्षको करता अर्थात् | लिये प्राप्त होती हुई श्रानन्द देने और | प्रगट करता है उसको पाप पुकारिये मख करने वाली हों और भोजनादि भावार्थ-जैसे सारथी घोहों को यथेष्ट स्नेह करने वाली हों-" स्थानमें लेजानेको समर्थ होता है वैसे बादल की स्तुति वेदों में इस प्रकार ही मेघ जलोंको इधर उधर लेजाता है की गई है जिस प्रकार वेदोंके कवियोंने अग्नि ऋग्वेद पंचम मंडल मूक्त ४२ ऋ० १४ | जल आदिक अनेक बस्तुमसे प्रार्थना " हे स्तुति करने वाले प्राप जो मे- की है इस ही प्रकार सर्प प्रादि भय घोंसे युक्त और बहुत जल घाला अ-कारी जीवोंसे भी प्रार्थना की है हम तरिक्ष और प्रथिवी को सींचता हुआ| स्वामी दयानन्दजी के प्रोंके अनुसार) विमलीके साथ प्राप्त होता है और जो कुछ वाक्य यहां लिखते हैं। उत्तम प्रशंसा युक्त है उस गजना करते ऋग्वेद प्रथम मंडल सू२१९१ ऋ०५-६ । हुए को निश्चय से प्राप्त होनो और | " वे ही पूर्वोक्त विषधर वा विष माप शब्द करते हुए पृथिवीके पागन रात्रिके प्रारम्भमें जैसे चोर वैसे प्रतीकरने वासेको उत्तम प्रकार जनाइये । तिसे दिखाई देते हैं। हे दृष्टि पथ न ग्यद पंचम मंडल सूक्त ४२ ० १६ आने वाले वा सबके देखे हुए विषधा" हे विद्वान् ....और दाता भाप रियो तुम प्रतीत ज्ञानसे अर्थात ठीक और जो यह प्रशंमा करने योग्य मेघ | समयसे युक्त होत्रो ,. घा पन्हि धन के लिये भूमि प्राकाश | "हे दुष्टि गोचर न होने वाले और और यव प्रादि ओषधियों तशा बट सबके देख हुए विषधारियो जिन का और अश्वत्थ आदि वनस्पतियों को | मर्यके समान सन्ताप करने वाला तुप्राप्त होता है उस को प्राप अच्छे प्र- म्हारा पिता पथ्वी के समान माता चकार प्राप्त हूजिये वह मेरे लिये सुख का-न्द्रमाके समान भाता और विद्वानोंकी रक होवै जिससे यह पृथिवी ( माता) अदीन माताके समान वहन है वे तुम | माताके सदृश पालन करने वाली हम | उत्तम सुख जैसे हो ठहरो और अपने लोयोंको दुष्ट बद्धि में नहीं धारण करै-" | स्यानको जाओ--, ऋग्वेद पंचम मंडल मुक्त ८३ ऋ०३ | जिस प्रकार कविलोग खियोंका व. "हे विद्वन् जो मेघ मारने के लिये | न किया करते हैं उम ही प्रकार - रस्सी अर्थात् कोडेसे घोड़ों के सन्मुख दोंके कवियों ने भी स्त्रियों का वर्णन लाता हाम्रा बहत रघवालेके सदृश व-|किया है हम कुछ वाक्य स्वामी दयापांत्रों में श्रेष्ठ दूतों को प्रकट करता है मन्द सरस्वतीजीके बेदभाष्यसे लिखते हैं
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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