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________________ (४९) आर्यमतलीला। इच्छा करने और वल को न पतन। ऋग्वेद प्रथम मंडन सक्त १ कराने वाले अग्नि के समान प्रकाश- हम अग्नि की बारम्बार अशा क-1 मान आपके सम्बंध में जो अग्नि है रते हैं-यह अग्नि नित्य खोजने योग्य है। उसकी इस समिधा से और उत्तमतासे अग्निही को संयुक्त करने से धन प्राप्त कहे हुए सूक्त से हम लोग सेवनकरें-" होता है ऋग्वेद प्रथम मण्डल मक्त २१ ऋचा १ अग्नि ही मे यज्ञ होता है "संमारी पदार्थों की निरन्तर रक्षा अग्निदिव्य गुणवानी हैकरने बाले वायु और अग्मि हैं उन | ऋग्वेद प्रथम मंडल सक्त १२ को और मैं अपने समीप कामको सिद्धि | "हम अग्नि को स्वीकार करते हैं, के लिये वश में लाता है। और उनके । "जैसे हम ग्रहगा करते वैसे ही तुम लोग और गुगोंके प्रकाश करने को हम लोग भी करो, __ “अग्जि होम किये हुए पदार्थ को इच्छा करते हैं।" ___ऋग्वेद दुमरा मंडला सूक्त ८ ऋ४ | ग्रहण करने वाली है और खोज करने "जो बिजली रूप चित्र विचित्र अद्भुः “अभिकी ठीक २ परीक्षा करके प्र. योन्य है" त अग्नि अविनाशी पदार्थोंसे सब पोर. सवारयोग करना चाहिये। से सब पदार्थों को प्रकट करता हुआ अग्नि बहान कार्यकारी है जो लाल अग्नि प्रशंसनीय प्रकाशमेप्रादित्यके सलाल मस वानी है मान अहले प्रकार प्रकाशित होता है। "हे मनध्य मब मुखों की दाता अनि वह सब को ढंढ़ने योग्य है।" को सब के समीप मदा प्रकाशित वार ऋग्वेद मंडल सात सूक्त १ ऋ०१ । जो प्रकाश और दाह गुण वाले अग्नि "हे विद्वान् मनप्यो जसे आप उ-का सेवन वारता है उमकी अग्नि नाना तेजित क्रियाओंने हाथों प्रकट होनेमकार के मुखाम रक्षा करने वाला है.-" वाली घनाने स.प निघासे (अरसम) अग्नि की रति बिद्वान करते हैं.. अरसी नामक जयर नीथके दो काष्टा वेदनमरा मंडल मत २५ । में दर में देखने योग्य अग्नि को प्रकट "अनि को आत्मा में तुम लोग विकरें-" शंप कर जानो" ऋग्वेद मंडल भात सूक्त १५ ऋ०८ ऋग्वेद तीमरा मंडल मुक्त ऋ२ | "हे राजन् हम को चाहने वाले सुन्दर| "जिन्होंने अग्नि उत्तम प्रकार धाबीर पुरुषों से युक्त प्राप रात्रियों और रस किया उन पुरुषों को भाग्य शाली फिर श यक्त दिनों में हनको प्रमाशित जानना चाहिये ---, कीजिये छाप के माय सुन्दर अग्नियों। ऋ ० ३ ० २ ० ५ का भावार्थ बाले हम लोग प्रतिदिन दस शितही” " मनुष्य मथकर भक्निको उत्पन्न
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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