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________________ भार्यमतलीला॥ देशों में जाकर बड़ी कठिनाई से | माया और उससे भी यह ही बात इनको अग्नि जलाना, अनाज भूनना पूंछी । माहब ने भी बहुत कुछ समऔर भोजन पकाकर खाना आदिक काया परन्तु उसकी कुछ समझमें न बात क्रियायें सिखाई हैं परन्त अब आया वह तुरन्त वहांसे चलागया और तक भी वह ऐसे नहीं हुये हैं जैसे हि- उस इंटमें, जिस पर साहब ने चिट्ठी न्दुस्तान के ग्रामीण मनुष्य होते हैं। लिखी थी, एक सूराख करके और रस्सी हमारे ग्रामीण मनष्य अब भी हमसे डालकर उसको गलेमें लटकाकर ढोल बहुत ज्यादा होशियार और सभ्य हैं | बजाता हुआ गांव गांव यह कहता अंग्रेजी की एक पुस्तक में एक ममय हुआ फिरने लगा कि अंग्रेज लोग जा का वर्शन लिखा है कि जिन हवशियों दूगर हैं जो ईंटके द्वारा बात चीत कको अंगरेजोंने बहुत का सभ्यता मि- रते हैं। देखो इस ईट ने मेमसाहब खादी थी और वह बहत कछ होशि- को यह कह दिया कि साहव गणिया मांगता है ॥ यार होगये थे उनके देश में एक अंग्रेज एक नदी का पुल वनवा रहा था, ह ___ स्वामी दयानन्द स्वतीजीने जो बशी लोग मजदूरी कर रहे थे, अंगरेज वेदोंके अर्थ किये हैं उनके पढ़नेसे भी यह मालूम होता है कि किसी देश में को पुलके काम में गणिया की जरूरत हुई, रहने का मकान दूर था इस कार हषाशी लोग रहते थे उन हअशियों ने जिस समय अग्नि जलाना और णा साहबने एक ई टपर चिट्ठी लिखकर अग्निमें भोजन आदिक बनादा जान एक हवशी को दी और कहा कि यह लिया उस समय उनको बहुत अचम्मा ईट हमारे मकान पर जाकर इमारी हमा और उन्होंने ही अग्निकी प्रशंमेमसाहबको देदो-हवशी ईट लेगया सा और अन्य मनष्योंको अग्नि जला मेमने पढ़कर मुणिया हबशीको देदि. ना सांसनेकी प्रेरणा आदिक में वेदों या कि लेजायो। हबशीको बहुत अ-के गीत बनाये हैं। इस प्रकारके सैकड़ों चम्मा हा और मेमसाहब का गीत वदों में शौजद हैं परन्त हम कुछ पकड़ कर कहने लगा कि सच बता तुम | " | वाक्य स्वामी दयानन्दजीके वेद भाष्य किमने कहा कि साहब को गुणिया दर- हिंदी अर्थो मेंसे नीचे लिखते हैं:कार है। मेमने हाथी को बहुत कुछ मम- ऋग्वंद दुसरा मगहन सूक्त ४ ऋचा १ काया कि जो ईट तू लाया था उस पर | : जैसे-मैं अग्नि की तुम लोगोंके लिये लिखा हुआ था परन्तु वह कुछ भी प्रशंसा करता हूं दमे हम लोगों के लिये न समझ सका क्योंकि यह लिखने प-तुम अग्नि की प्रशंसा करो--" ढनेकी विद्याको कुछ भी नहीं जानता ऋग्वेद दूमरा मराठा सक्त ६ ऋचार था । वह गुणिया लेकर साहब के पास! "हे शोभन गुणों में प्रसिद्ध घोडेके
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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