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________________ १५४ मार्यमतलीला यह बहुत छोटी बातें हैं परन्तु स्वा-, क्या सांख्य दर्शनके कां कपिलाचार्य | मीनीने बET बहा देठ किया है और से भी अधिक दयानन्दजीको सरखती भोले मनुष्योंकी मांखों में धल डालनेकी का वर मिलगया कि कपिलाचार्यसे कोशिश की है-देखिये उन्होंने सत्या- भी अधिक वेद के ज्ञाता होगये और र्यप्रकाश पृष्ठ २३९ पर उपनिषद्का उपनिषदोंके बनाने वालोको भी बह एक बचन इस प्रकार लिखा है:- बात न सूझो जो सरस्वती जीको मः। नच पनरात न पनराबतति, झी ? यहां तक कि व्यामजी महाराज जिसका अभिप्राय यह है कि मुक्ति ने भी अपने शारीरक सूत्र में गलती से जीवका फिर वापिस पाना नहीं- खाई और इन सबकी गलतियोंको होता है दुरुस्त करनेवाले कि वेदोंमें मुक्तिसे इसही प्रकार एक सूत्र शारीरकसत्र / जीवका लौटना लिखा है एक स्वामी का इस प्रकार दिया है: जी ही हुये ? और तिसपर भी तुर्रा यह “अनावृत्तिःशब्दादानावृत्तिः शब्दात्" कि स्वामीजी सांख्य दर्शनको मामाथिजिसका भी यह ही अभिप्राय है कि | मुक्तिसे जीव नहीं लौटता है-इस प्र-. पाठकगण ! मुक्तिसे जीवका मली. कार उपनिषद् और शारीरक के बचन टना के वन्न एकही उपनिषद् में नहीं लिखते हुये सरस्वती दयानन्द जी प्रश्न लिखा है परन सब उपनिषद् प्रादि । उठाते हैं इत्यादि बचनोंसे विदित । यन्धों में ऐमा हो मिसा है या:होता है कि मुक्ति वही है कि जिम "एतस्मान पुनरावर्तन्ते" ( प्रश्नी-1 से निवृत होकर पुनः संसार में कभी पनिषदि) नहीं आता" हम प्रकार प्रश्न उठाकर अर्थ-ठमको प्राप्त होकर फिर नहीं स्वामीजी उत्तर देते हैं . यह बात तेष ब्रह्म लोकेष परा परावतो बठीक नहीं क्योंकि वेद में इस बातका | सन्ति तेषां न पुनरावृत्तिः निषेध किया है.." (वृहदारण्यक) पाठकगण ! स्वामीजीके इस उत्तर अर्थ उम ब्रह्म लोक में अनंतकाल को पढ़कर पा संदेह उत्पन्न नहीं होता वास करते हैं उनके लिये पुनरावृत्ति कि महाराज कपिल जीतो सांरूप शा- नहीं इस ही प्रकार मचं प्राचीन ग्रन्थों ख में ऐमा लिखते हैं कि वेदोंसे यह में जिन को स्वामी जीने मामा और ही सिद्ध है कि मुक्तिसे फिर लौटना जिनके आधार पर वेदोंका भाष्य क-1 नहीं होता और दयानन्द सरस्वती जीरना सरस्वती जी ने लिखा है यादी | लिखते हैं कि वेदों में लौटना लिखा लिखा मिलता है कि मुक्ति सदा के इन दोनों में से किमकी बात सत्य है? वास्ते है वहां से लौटकर फिर संसार -
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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