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________________ प्रार्थमलीला १५५ में फंसना नहीं होता । परन्तु दया। फिर भी बड़ी पृथिवी के लिये दे जिस | नन्दजी के कथन से इस विषय में सर्व । से हम पिता और माता को देखें ॥१॥ ग्रन्थ कुठे और किसी ने आज तक | हम लोग देवतों के मध्य में प्रथम - वेदों की नहीं ममका ! सृष्टि की आग्नि देवता के सुंदर नाम को उच्चारदिले प्राज तक सिवाय दयानन्द जी करें वह हम को बड़ी पृथिवी के के और कोई वेदों को समझ भी नहीं लिये दे जिसमे हम पिता और माता सकता था क्योंकि साक्षात् मरस्वती को देखें ॥२॥ तो दयानन्द जी हो हुये हैं इन्हों ने हो यह बात निकालो कि मुक्ति से लौट कर जीव को फिर संसार में भ्र ना करना पड़ता है । पाठकगणो ! इन दोनों ऋषाओं में न मुक्ति का कथन है न मुक्तिसे लौट आाने का परन्तु इनका अर्थ स्वामीजी सत्यार्थप्रकाश में इस प्रकार दिया है। ( प्रश्न ) हम लोग किस का नाम पवित्र जानें? कौन नाश रहित पदापके मध्य में वर्तमान देव सदा प्र काश रूप है हम को मुक्ति का सुख भुगा कर पुनः इस संसार में जन्म देता और माता पिताका दर्शन कराता है ॥१॥ ( उत्तर ) हम इस स्वप्रकाश रूप - नादि सदा मुक्त परमात्मा का नाम पवित्र जानें जो हम को मुक्ति में प्रानंद भुगाकर पृथिवी में पुनः माता पिता के सम्बन्ध में जन्म देकर माता पिता का दर्शन कराता है वही परमात्मा मुक्ति की व्यवस्था करता सब का स्वामी है ॥२॥ सरस्वती जीके इन छार्यो को पढ़कर बड़ा आश्वर्य होता है कि स्वामी जी ने किस प्रकार यह अर्थ लगा दिये ? | इनकी खोज में स्वामी जीके वेद भाष्य को देखने पर मालूम हुआ कि सारेही अर्थ मन घढ़न्त लगाये हैं हमको ज्याचारण करें-कौनसा देवता हम को | दा खोज इस बात की थी कि "हम | प्रकार के देवता के शोभन नाम को उ प्यारे पाठको ! यह तो सब कुछ सही, मत्र झूठे और अविद्वान् हो सही परन्तु जरा यह तो जांच करलो कि मुक्ति से लौटना वेदों में कहां लिखा है और किम प्रकार लिखा है ? स्वामी जी ने वेदों में से मुक्ति से जीव के लौटने के दो मंत्र ढंढ़कर निकाले हैं और उनको सत्यार्थ प्रकाश के पृष्ठ २३९ पर इस प्रकार लिखा हैकस्यनूनं कतमस्या मृतानांमनामहे | चारुदेवस्य नाम । कोनो मह्यादितये पुनदांत पितरञ्च दृश्यं मातरच्च” ॥१॥ "अग्नेर्नूनं प्रथमस्या मृतानामनामहे चारुदेवस्यनाम । मनो मह्याश्रदितये | पुनर्दात् पितरच दूर्शयंमातरच ॥ २ ॥ ऋ० मं० १ ॥ सू० २४ मं० १॥२॥ श्रुतियों का अर्थ इस प्रकार हैहम लोग देवतों के मध्य में किम
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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