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आर्यमतलीला ॥
११३ और अल थाने में इतना ही अन्तर है | को माते मे अगाया। फजल खर्ची, कि मुक में मन की बाल विवाह और अन्य कुरीतियों को एमी और मेल खाने में कामो हटाना निग्या या जिनमें हमारा गृहस्थ है। परन्तु म्यामा की श्री मा 7 अत्यन्त दमाई होरहा था, संस्कृत कि कैद भी दो प्रकार की होलीविया नहीं मयि दिगाई जिम एक कंद मुगवन जिनमें मनन कर-को हम किन भन्न बठे थे और मनी पड़ती है और दूसरी ६.६ महजबसे ब्रहा भारी उपकार याद किया कि जिममें मिहनत की कमी gaiन्दुिओंको ईमाई और मुसलमान
म कारणा स्वामी जी के कथना मारहारमे बचाया । परन्तु इम प्रयोजन के मुक्ति में जाना कद महोदाम्ने उनको मत्य धर्मको विल्कन ममार है। दमी है वायो - न भ माना पीर से मिद्धांत र यो मी भीमा ! म्यापन करने पावश्यक पच जो नन के वास्ते नहो, असा या दिनांक पुरुषको समिकर थे जो अंगरेजी धारते ही जिम की जिन तिम प्रकार पाकर ईसाई वा मुमनमानी धर्मको भगत कर फिर जीव संमार में प्रामक तरफ आकर्षित होते थे। उन कारख मोर मंमार के विषय भोग भोग मने स्वामीजीपा उपकार किमी ममय में ___प्यार प्रायं भाइयो : स्वामी प्रकार का कार देगा शोर मंमार में इम कचन में स्पष्ट वान
अत्यन्त प्रयको फैलाने ठाना होजास्वामीजको मंगाए
गा ! इनोद कम भाइयो ! श्राप बाही गानमा थोर उ नको "ाि है कि बाप कनर हिमान ना नमसे होमका है, मनुरोध को बांधे और प्राचीन प्राचार्यों के गत से घटाकर मकिके माधनाम पता - गज करें मीर वधsक कर स्टाराकर मंमारकी पुष्टि और टिम बमोगा के उन मद्धांतों को रद्द कर देव गानेकी कोशिश की है। इस का जो अधर्म के जाने वाले हैं । एमा कप्रापको उचित है कि पारख माचार में आपका प्रार्य नाम मार्थक हैं। स्वामी दयानन्द के वागां अन्न कर जावेगार मार्यममाज सदाके निय न करें वरण अपने कल्याणक अयं ग कल्यामा कानी होकर अपनीवृद्धिरेगा। त्य धर्मको खोम करें और मत्य के हो प्यारे भाइयो ज्यां ज्यों भाप सा. ग्रहणकी चेष्टा करें।
मी जीके लखांपर विचार करेंगे तो प्यारे भाइयो : हम स्वामी जी को त्यों माप की माला होगा कि या तो भाभारी है कि उन्होंने हिन्दुस्तान में स्वामी जी कि धर्म की म रहने वाले प्रमादमें फंसे हुये मनुष्यों हो नहीं पं. दाने का.. कर