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________________ शामलीला जाग युक्त वासी और भली भांति रात तंगी और समाही पिकासार क्षा करने हारे राजाके लिये उत्तम रस धादिमें बांधनेली रस्सी-बाजोरि युक्त पदापों का सार निकालते हैं वेके में होने वाली महमें बात रस्ती तुम प्राजकरो-, हिराशादि अपवा जोसोमब बजर्वेद २ वां अध्याय ६० में पास दूब मादि विशेष काम"हे मनुष्यों जैसे भाज भली मालिताने घरी होवे सब पदार्थ समीपस्बिर होने वाले और दिव्य गुरु और यह उक्त समस्त बस्तु ही विद्वान बाला पुरुष बट का प्रादिके समान नोंमें भी हो.." जिस प्राय और भयानके लिये दुःख “हे मनग्यो ! जो मक्सी लते हुए बिनाश करने वाले डेरी शादि पशुसे शीघ्र जाने वाले घोडेका भोजन करती बापीके लिये मेढ़ासे परम ऐवर्षके लिये अर्थात् कुछ मल रुधिर भादि खाती वैलसे भोग करें उन सुन्दर चिकने अथवा जो स्वर बजके समान वर्तमान पापोंके प्रति पचाने योग्य बस्तुओंका हैं वा यन करने हारेके हाथों में जो बस्त यह करें प्रथम उत्तम संस्कार किये प्राप्त और जो नसों में प्राप्त है सब हुए विशेष मनोदेवद्धिको प्राप्त हों प्राय पदार्थ तुम्हारे हों तथा यह समस्तव्य-1 अपान प्रशंसित वाली भलीभांति रक्षा बहार विद्वानोंमें भी होवें।। करने हारा परम ऐवधान राज को यजुर्वेद २५ वा अध्याय मा०३५ भरकरनेसे उत्पन हों उन औषधि "जो घोडेके मांसके मांगनेकी उपारसोंको पी वैसे प्राप होवो., समा करते और जो पोड़ा को पाया| यणर्वेद २५ वां अध्याय ०९ मा मारने योग्य कहते हैं उनको नि" जो पाखंभाके छेदने बनाने और रन्तर हरो दूर पहुंचामो-जो वेगवान् | जो यस्तम्भ को पहुंचाने वाले घोडा | घोहोंको पक्का सिखाके सब घोरसे देके बांधनेके लिये सम्माके खंडको का- खते हैं और उनका अच्छा सुगन्ध और एतेसंटते और जो घोडाके लिये जि-सब ओर से उद्यम हम लोगों को प्राप्त समें पाक किया जाम उस कामको प्र-हो उनके अच्छे काम इन को प्राप्त के प्रकार धारण करते वा पुष्ट करते इस प्रकार दूर पहुंचानी। " और जो उत्तम यत्र करते हैं उन का पर्वेद २५ वा अध्याय ०३६ सब प्रकारसे उद्यन हम लोगों को व्याप्त जो गरमियों में उत्तम ढापने और और प्राप्त होवे. | सिचाने हारे पात्र वा जो मांस जिस यजुर्वेद २५ वां अध्याय ०३१-३२ में पकाया जाय उस बटलोई का कि "हे विद्धन् ! प्रशस्त बन वाले इस कष्ट देखना बा पात्रों के समक्षा किएएस बलबान घोडेका जो उदर बन्धन अ.1 प्रसिद्ध पदार्थ तथा बढ़ाने वाले पो -
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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