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________________ मार्यमतलीता। डेको सब बोरसे सुशोभित करते हैं वे | प्रादि हैं जिनका वर्णन यजुर्वेद अध्यासब स्वीकार करने योग्य हैं।” २५ में किया है ? यजुर्वेद २५ वां अध्याय ऋ०३७ आर्यमत लीला। : हेमनष्यो ! जैसे विद्वान जन जिस चाहे हुये प्राप्त चारों ओरसे जिसमें उ [घ-भाग |द्यम किया गया ऐसे क्रियासे सिद्ध हुए आर्यों का मुक्ति वेगवान् घोड़े को प्रति प्रतीतिसे ग्रहण सिद्धान्त। करते उसको तुम सब ओर से जानी उ. सको धनांमें गन्ध जिसका वह अग्निः | भेड़ बकरी चराने वाले गंधारोंके जो मत शब्द करे वा उसको जिमसे किमी गीत वदोंसे उद्धल कर हम स्वामी दया बस्तको संघते हैं वह चमकती वट लोईना प्रों के अनमार जैनगजट मत हिसवावे।,, __ यजुर्वेद २८ वा अध्याय ऋ०४६ में [ पिछले लेखों में ] लिखते रहे हैं उम को पढ़ते पढ़ने हमारे भाई उकता "हे मन्त्रार्थ जामने वाले विद्वान गये होगें-हमने वहुप्त मा भाग वेदोंका पुरुष । जैसे यज करने हारा इस स जैन गजट में छाप दिया है शेष जो मय नाना प्रकार के पाकोंको पकाता छपने से रह गया है उस में भी प्रायः और यामें होमनेके पदार्थको पकाता इसही प्रकार के गंवारू गीत हैं इम हुमा तेजस्वी होता को प्राज स्वीकार कारण यदि आगामी भी हम वेदों के करे वैसे सबके जीवन को पढ़ाने हारे वाक्य छापते रहेंगे तो हमारे पाठकों उत्तम ऐश्वर्य के लिये वेद न करने वाले को अरुचि हो जावेगीबकरी प्रादि पशुको बांधते हुए स्त्री अतः अब हम वाद वाक्यों का लिस्पना कार कीजिये, छोड़ कर भार्य मतके मिदान्तां और यजुर्वेद २५ वां अध्याय ऋ. ४२ | स्वामी दयानंद जी की कर्तृत को दि"हे मनष्यो ! जमे प्रकला वमन्ति | खाना चाहते हैंमादि ऋत शोभायमान घोडका वि- हमारे पाठक जानते हैं कि पृथ्वी शेष करके रुपादिका भेद करने वाला पर अनेक देश हैं परन्तु हिन्दुस्तानके होता है या जो दो नियम करने वाल अतिरिक्त अन्य किमी देश वासियों होते हैं वैसे जिन तम्हारे अंगों वा पि-को जीवात्मा के गुगा स्वभाव और गहों के ऋतु सम्बन्धी पदार्थों को में क-कर्म का ज्ञान नहीं है-अाजकल अंगरेरता हूं उन २ को भागमें होमता हूं-, लोग बहुत बुद्धिमान कलाते हैं ( नोट ) अंगों वा पिण्डॉक ऋतु और पदार्थ विद्या में बहुत कुछ जाम सम्बन्धी पदार्थ क्या वही पशु पक्षी | प्राप्त कर उन्होंने अनेक ऐनो कल व.
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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