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________________ - बानतलीला विदापाले राजाके लिये जी सिंह “श्री मांसाहारी जिसमें मांस पकाते रबह मस्त देवता वाला जो गिर हैं उस पाक सिद्ध करने वाली बाटलोई गिटान प्रिय नाम की पक्षिसी का निरन्तर देखमा करते इसमें वैमन और पसिना सब जो शरबियों | स्य कर जो रसके अच्छे प्रकार सेचनके में जल उत्तम उसके लिये और प्राधार बा पात्र वा गरमपन उत्तम | जी पन्जाति के हरिण हैं वे सब विपदार्थ बटलोहयोंके मुख ढांपनेकी -1 द्वानों के अर्थ जानना चाहिये ।" कमियां अन्न प्रादिके पकानेके आधार (नोट) प्रिय पाठको अब पाप स- बटलोई कडाही प्रादि बर्तनोंके लाल मक गये होंगे कि इस अध्याय में कैसे Marमें से उनको अच्छे जानते और पोहोंको गोही प्रकारका वर्णन सारे सुशोभित करते हैं वे प्रत्येक काममें अध्याय में है परन्तु मेह बकरी चराने प्रेरित होने हैं। वाले गंवारों को जैमी बद्धि होती है। अग्वद पंचन मंडल सूक्त३४ ३. वैसा ही उन विचारों ने गीतोंमें अ- हमनग्या को कामना करता हुधा टसप बीन किया है ॥ बहुत धनसे युक्त जन सोमलतास - |स्पन रससे उदरकी अग्निको अच्छे प्रआर्यमत लीला। | कार पूर्ण करे और मधुर प्रादि गुलोंसे (१५) युक्त भन्न धादिका भोग करके प्रानन्द करे और जो अत्यन्त नाश करने वाला वेदों में मांसका भी वर्णन मिलता है। | ( मृगाय ) हरिखको मारने के लिये ह. स्वामी दयानन्द सरस्वतीजीके मोंके | "जारों दहन जिससे उस बधको सब अनुसार हम कुछ वेद मंत्र लिखते हैं। | प्रकारसे देवै वह सब सुखको प्राप्त | और अपने उन प्रार्या भाइयोंसे जो | होता है। मांसका निषेध करते हैं प्रार्थना करते | | यजुर्वेद २१वां अध्याय ३० ye हैं कि वह क्या कर इन मंत्रोंको पढ़े | "हे मनुष्यो जैसे यह पचाने के प्रकारों और विचार करें कि-वेदों में मांसका को पचाता अर्थात् सिद्ध करता और वर्षन किस कारण पाया है। और | यात प्रादि कर्ममें प्रसिद्ध पाकोंको प. यदि भले प्रकार विचारके पश्चात् भी चाता हुशा यह करने हारा मुखोक उसकी यह ही सम्मति हो कि वेद ई-टेने वाले प्रागको स्वीकार वा से प्रापर वाप हैं और अबश्य मानने योग्य | ख और अपान के लिये छेरी (बकरी तो परोपकार बुद्विसे वह इन मंत्रों का बच्चा) विशेष जान युक्त वापीके का भाशय प्रकाशित कर देखें ॥ लिये भेड़ और परम ऐश्वर्य के लिये बैल |ग्वेद प्रथम मंडल सूक्त १६२ ऋ० १३ 'को बांधते हुए वा प्रास अपान विशेष
SR No.010666
Book TitleAryamatlila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Tattva Prakashini Sabha
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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