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समन्तभद्र - परिचय
सूचन किया जाता है, जिससे समन्तभद्रकी गमकत्वादि-शक्तियो और उनके वचन माहात्म्यका और भी कुछ पता चल सके
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(क) श्रीवादिराजमूरिने, न्यायविनिश्चयालङ्कारमे लिखा है कि 'सर्वत्र फैले हुए दुर्नयरूपी प्रबल अन्धकार के कारण जिसका तत्त्व लोकमे दुर्बोध हो रहा है-ठीक समझमे नही आता - वह हितकारी वस्तु — प्रयोजनभूत जीवादि-पदार्थमाला - श्रीसमन्तभद्रके वचन रूप देदीप्यमान रत्नदीपकोके द्वारा हमे सब ओरसे चिरकाल तक स्पष्ट प्रतिभासित होवे - अर्थात् स्वामी समन्तभद्रका प्रवचन उस महाजाज्वल्यमान रत्नसमूहके समान है जिसका प्रकाश अप्रतिहत होता है और जो संसारमे फैले हुए निरपेक्षनयरूपी महामिध्यान्धकारको दूर करके वस्तुतस्वको स्पष्ट करनेमे समर्थ है, उसे प्राप्त करके हम अपना अज्ञान दूर करे ।'
(ख) श्रीवीरनन्दी आचार्यंन, चन्द्रप्रभचरित्रमे लिखा है कि गुणोसे— सूतके धागोसे - गूथी हुई निर्मल गोल मोतियोसे युक्त और उत्तम पुरुषोके कण्ठका विभूषण बनी हुई हारयष्टिकोश्रेष्ठ मोतियोकी मालाको—- प्राप्त कर लेना उतना कठिन नहीं है जितना कठिन कि समन्तभद्रकी भारती ( वारणी ) को पा लेनाउसे खूब समझकर हृदयङ्गम कर लेना है जो कि सद्गुणोको लिये हुए है, निर्मल वृत्त ( वृत्तान्त चरित्र, आचार, विधान तथा छन्द) रूपी मुक्ताफलोसे युक्त है और बड़े-बड़े आचार्यों तथा विद्वानोने जिसे अपने कण्ठका आभूषण बनाया है - वे नित्य ही उसका उच्चारण तथा पाठ करनेमे अपना गौरव मानते और अहो - भाग्य समझते रहे हैं । अर्थात् समन्तभद्रकी वाणी परम दुर्लभ है - उनके सातिशय वचनोका लाभ बड़े ही भाग्य तथा परिश्रमसे होता है ।'
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